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Showing posts from September, 2023

उत्तम-खमा

उत्तम-खमा 1.खमामि सव्वजीवाणं सव्वे जीवा खमंतु मे। सभी जीवों को मैं क्षमा करता हूँ, सभी जीव मुझे क्षमा करें। 🌷🌷🌷🌷 2.खमा वरं सुट्ठु वि तवाओ। क्षमा बड़े से बड़े तप से भी श्रेष्ठ है। 🌷🌷🌷🌷🌷 खमंति-खामयंति तरंति भवसायरं। जो क्षमा करते हैं तथा कराते हैं, वे संसार सागर पार करते हैं। 🌲🌲🌲🌲🌲 खमा वीर-भूसणं। क्षमा वीर पुरुषों का आभूषण है। 🌿🌿🌿🌿🌿 बहुहा धम्माणुरायी खमासीलो। बहुधा धर्मानुरागी लोग क्षमाशील होते हैं। ☀️☀️☀️☀️☀️ खमा महप्पाणं सहजगुणो जहा सप्पीए सणेहत्तं। क्षमा महात्माओं का सहज गुण है, जैसे घी में स्निग्धता। 💐💐💐💐💐 खमाए भूसदि पुरिसा जहा मणिणा सप्पो। क्षमा से पुरुष विभूषित होते हैं, जैसे मणि से सर्प। 🌷🌷🌷🌷🌷 खमासीला रयणं व दुल्लहा। क्षमाशील रत्न के सदृश लोक में दुर्लभ हैं। 🌷🌷🌷🌷🌷 खमा-सत्थेण विणस्सदि वेरं। क्षमा रूपी शस्त्र से शत्रुता का नाश होता है। 🌲🌲🌲🌲🌲 खमव्व ण को वि गुणो । क्षमा के समान कोई भी गुण नहीं है। 🌲🌲🌲🌲🌲🌲 ण कुप्पंति महरिसी खमणगुणवियाणया साहू। क्षमागुण के ज्ञानी महर्षि मुनि क्रोध नहीं करते हैं। 🌲🌲🌲🌲🌲 सव्वं खमेदुं समत्था मुणी। सभी को क्षमा

वाराणसी काशी की प्राचीन जैन संस्कृति एवं परम्परा

वाराणसी की प्राचीन  जैन संस्कृति एवं  परम्परा प्रो. फूलचन्द जैन प्रेमी, वाराणसी (राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित)       श्रमणधारा भारत में अत्यंत प्राचीन काल से प्रवहमान है । पुरातत्त्व, भाषा एवं साहित्य के क्षेत्रों में अन्वेषणों से यह स्पष्ट है कि  अपने देश में प्राक् वैदिक काल में जो संस्कृति थी, वह श्रमण या आर्हत्-संस्कृति होनी चाहिए । यह संस्कृति सुदूर अतीत में जैनधर्म के आदिदेव अर्थात् आदिनाथ  ऋषभदेव द्वारा प्रवर्तित हुई। श्रमण संस्कृति अपनी जिन विशेषताओं के कारण गरिमामण्डित रही है, उनमें श्रम, संयम और त्याग जैसे आध्यात्मिक आदर्शी का महत्वपूर्ण स्थान है । अपनी इन विशेषताओं के कारण ही अनेक संस्कृतियों के सम्मिश्रण के बाद भी इस संस्कृति ने अपना पृथक् अस्तित्व अक्षुण्ण रखा ।        भारतीय इतिहास के अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि इसमें समृद्ध तथा सर्वाधिक प्राचीन जैनधर्म और उसकी विशाल सांस्कृतिक परंपराओं की विशेष उपेक्षा हुई है, जबकि यह श्रमण परंपरा विभिन्न कालखंडों और क्षेत्रों में आर्हत्, व्रात्य, श्रमण, निर्ग्रन्थ, जिन तथा जैन इत्यादि नामों से  विद्यमान और विख्यात रही है । इतिहास

भारतं मे प्रियं राष्ट्र

.  *भारतं मे प्रियं राष्ट्र, भारतं हितकारकम्* ।   *भारताय नमस्तुभ्यं, यत्र मे पूर्वजाः स्थिताः।।*                               (–विश्वलोचन कोश, आचार्य धरसेन) अर्थ- भारत मेरा प्रिय राष्ट्र है। भारत हितकारक है । अहो, मैं इस भारतवर्ष को नमस्कार करता हूँ, जहाँ कि मेरे महान पूर्वज रहे हैं।

दान सिर्फ धन से नहीं ,मन से भी होता है

*एक उम्रदराज औरत ने बड़े सम्मानपूर्वक आवाज़ दी, "आ जाइए मैडम, आप यहाँ बैठ जाइये" कहते हुए उसे अपनी सीट पर बैठा दिया, खुद वो गरीब सी औरत बस में खड़ी हो गई. मैडम ने दुआ दी, "बहुत-बहुत धन्यवाद, मेरी बुरी हालत थी सच में."* *उस गरीब महिला के चेहरे पर एक सुकून भरी मुस्कान फैल गई.*  *कुछ देर बाद शिक्षिका के पास वाली सीट खाली हो गई लेकिन महिला ने एक और महिला को, जो एक छोटे बच्चे के साथ यात्रा कर रही थी और मुश्किल से बच्चे को ले जाने में सक्षम थी, को सीट पर बिठा दिया.* *अगले पड़ाव पर बच्चे के साथ महिला भी उतर गई, सीट खाली हो गई, लेकिन नेकदिल महिला ने बैठने का लालच नहीं किया, बस में चढ़े एक कमजोर बूढ़े आदमी को बैठा दिया जो अभी - अभी बस में चढ़ा था.* *सीट फिर से खाली हो गई। बस में अब गिनी – चुनी सवारियां ही रह गईं थीं, अब उस अध्यापिका ने महिला को अपने पास बिठाया और पूछा,* *"सीट कितनी बार खाली हुई है लेकिन आप लोगों को ही बैठाते रहीं, खुद नहीं बैठीं, क्या बात है ?"* *महिला ने कहा, *"मैडम, मैं एक मजदूर हूं, मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं कि मैं कुछ दान कर सकूं तो मैं

Think when you cross the 60

*एक दोस्त से पूछा, जो 60 पार कर चुका है और 70 की ओर जा रहा है। वह अपने जीवन में किस तरह का बदलाव महसूस कर रहा है?* I asked one of my friends who has crossed 60 & is heading to 70. What sort of change he is feeling in him? *उसने  निम्नलिखित बहुत दिलचस्प पंक्तियाँ भेजीं, जिन्हें  आप सभी के साथ साझा करना चाहूँगा ....।* He sent me the following very interesting lines, which i would like to share with you all..... *• मेरे माता-पिता, मेरे भाई-बहनों, मेरी पत्नी, मेरे बच्चों, मेरे दोस्तों से प्यार करने के बाद, अब मैं खुद से प्यार करने लगा  हूं।* • After loving my parents, my siblings, my spouse, my children, my friends, now I have started loving myself. *• मुझे बस एहसास हुआ कि मैं "एटलस" नहीं हूं। दुनिया मेरे कंधों पर टिकी नहीं है।* • I just realized that I am not “Atlas”. The world does not rest on my shoulders. *• मैंने अब सब्जियों और फलों के विक्रेताओं के साथ सौदेबाजी बंद कर दी। आखिरकार, कुछ रुपए अधिक देनेसे मेरी जेब में कोई छेद नहीं होगा, लेकिन इससे इस  गरीब को अपनी बेटी की स

तत्त्वार्थसूत्र की कतिपय प्रमुख टीकाएँ

*तत्त्वार्थसूत्र की कतिपय प्रमुख टीकाएँ*  1. गंधहस्तिमहाभाष्य –आचार्य समन्तभद्र- अनुपलब्ध 2. सर्वार्थसिद्धि –आचार्य पूज्यपाद – भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली  3. तत्त्वार्थवार्तिक – आचार्य अकलंक - भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली 4. तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक –आचार्य विद्यानंद –निर्णयसागर प्रेस, मुम्बई    5. तत्त्वार्थवृत्ति  – भट्टारक श्रुतसागर– भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली  6. तत्त्वार्थसूत्रवृत्तिपदं –आचार्य प्रभाचंद्र - भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित सर्वार्थसिद्धि के परिशिष्ट में 7. तत्त्वार्थसूत्र सुखबोधावृत्ति – भास्करनंदी – 8. तत्त्वार्थसूत्र टब्बाटीका – पंडित दौलतराम कासलीवाल –अप्रकाशित 9. तत्त्वार्थसूत्र वचनिका – पं. चेतनदास –दीप प्रिंटर्स, रोहिणी, नई दिल्ली 10. सर्वार्थसिद्धि वचनिका – पं. जयचन्द छाबडा- अ.भा.दि.जै.वि.परिषद्,जयपुर  11. अर्थ प्रकाशिका – पं.सदासुखदास – मूलचंद कापडिया, सूरत   12. स्वंत्रता के सूत्र – आचार्य कनकनंदी- धर्म विज्ञान शोध संस्थान,बड़ोत  13.  तत्त्वार्थसूत्र-विवेचन –आर्यिका स्याद्वादमति –भा.अने.वि.परिषद्,दिल्ली     14.  तत्त्वार्थसूत्र –आचार्य श्रुतसागर –श्रुत विद्या प्रका

प्राकृत ऋद्धिमंत्र

  प्राकृत   ऋद्धिमंत्र (आचार्य भूतबली प्रणीत मूल आगम ‘महाबन्ध’ का मंगलाचरण) 1. णमो जिणाणं । जिन भगवान् को नमस्कार हो । 2. णमो ओहिजिणाणं । अवधिज्ञानी जिनों को नमस्कार हो । 3. णमो परमोहिजिणाणं । परमावधि ज्ञानधारी जिनों को नमस्कार हो । 4. णमो सव्वोहिजिणाणं । सर्वावधि ज्ञानधारी जिनों को नमस्कार हो । 5. णमो अणंतोहिजिणाणं । अनंत अवधि ज्ञानधारी   जिनों को नमस्कार हो । 6. णमो कोट्ठबुद्धीणं । कोष्ठबुद्धि ऋद्धिधारी जिनों को नमस्कार हो ।   7. णमो बीजबुद्धीणं । बीज बुद्धि ऋद्धिधारी जिनों को नमस्कार हो । 8. णमो पदाणुसारीणं । पदानुसारी ऋद्धिधारी जिनों को नमस्कार हो । 9. णमो संभिण्णसोदाराणं । संभिन्न श्रोतृत्त्व नामक ऋद्धिधारी जिनों को नमस्कार हो । 10. णमो सयंबुद्धाणं । स्वयम् बुद्ध जिनों को नमस्कार हो । 11. णमो पत्तेयबुद्धाणं । प्रत्येक बुद्ध जिनों को नमस्कार हो । 12. णमो बोहिय बुद्धाणं । बोधित बुद्ध जिनों को नमस्कार हो । 13. णमो उजुमदीणं । ऋजुमति मनःपर्ययज्ञानी जिनों को नमस्कार हो । 14. णमो विउलमदीणं । विपुलमति मनःपर्ययज्ञानी जिनों को नमस्कार हो । 15. ण

प्राकृत सामायिक दण्डक

  प्राकृत सामायिक दण्डक (गौतम गणधर प्रणीत पाठ का संक्षिप्त )   णमो अरहंताणं णमो सिद्धाणं णमो आइरियाणं। णमो उवज्झायाणं णमो लोए सव्वसाहूणं॥ चत्तारि मंगलं - अरहंता मंगलं , सिद्धा मंगलं , साहु मंगलं , केवलिपण्णत्तो धम्मो मंगलं। चत्तारि लोगुत्तमा - अरहंता लोगुत्तमा , सिद्धा लोगुत्तमा साहु लोगुत्तमा , केवलिपण्णत्तो धम्मो लोगुत्तमो। चत्तारि सरणं पव्वज्जामि - अरहंते सरणं पव्वज्जामि , सिद्धे सरणं पव्वज्जामि , साहु सरणं पव्वज्जामि , केवलिपण्णत्तं धम्मं सरणं पव्वज्जामि। अड्ढाइज्ज-दीव-दो समुद्देसु पण्णारस-कम्म-भूमिसु , जाव अरहंताणं , भयवंताणं आदियराणं , तित्थयराणं , जिणाणं , जिणोत्तमाणं , केवलियाणं , सिद्धाणं , बुद्धाणं , परिणिव्वुदाणं , अंतयडाणं पार-गयाणं , धम्माइरियाणं , धम्मदेसयाणं , धम्मणायगाणं , धम्म-वर-चाउरंग-चक्क-वट्टीणं , देवाहि-देवाणं , णाणाणं दंसणाणं , चरित्ताणं सदा करेमि किरियम्मं। करेमि भंते! सामाइयं सव्वसावज्ज-जोगं पच्चक्खामि जावज्जीवं तिविहेण मणसा वचसा काएण , ण करेमि ण कारेमि , ण अण्णं करंतं पि समणुमणामि तस्स भंते ! अइचारं पडिक्कमामि , णिंदामि , गरहामि अप्पाणं , जाव अरहंत