जैनधर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋृषभदेव द्वारा प्रवर्तित श्रमण संस्कृति को अपने इस प्यारे देश का ‘भारतवर्ष’ यह नामकरण इन्हीं ऋृषभदेव के ही ज्येष्ठ पुत्र भरत चक्रवर्ती के नाम से करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इतना ही नहीं अपितु इस देश का प्राचीन ‘अजनाभवर्ष’ यह नामकरण भी ऋृषभदेव के पिता नाभिराज के नाम पर प्रचलित रहा। भारतवर्ष नामकरण के ये उल्लेख अनेक वैदिक पुराणों में उपलब्ध हैं। यथा-श्रीमद्भागवत पुराण (स्कन्ध 5, अध्याय 4)में कहा है कि भगवान् ऋृषभदेव को अपनी कर्मभूमि ‘अजनाभवर्ष’ में सौ पुत्र प्राप्त हुए, जिनमें से ज्येष्ठ पुत्र महायोगी भरत को उन्होंने अपना राज्य दिया और उन्हीं के नाम से इस देश का नाम ‘भारतवर्ष’ कहने लगे। (येषां खलु महायोगी भरतो ज्येष्ठः श्रेष्ठगुण आसीद् येनेदं वर्षं ‘भारतमिति व्यपद्विशन्ति।) इसी प्रकार लिंगपुराण (47/27-24) में भी कहा है- हिमाद्रेर्दक्षिणं वर्ष भरतस्य न्यवेदयत्। तस्मात्तंु भारतं वर्ष तस्य नाम्ना विदुर्बुधाः। विष्णु पुराण (अंश 2, अध्याय 1, श्लोक 28-32) वायुपुराण तथा ब्राह्मण्ड पुराण में भी यही बात कही गयी है।
प्रो.फूलचंद जैन
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