उत्तम-खमा
1.खमामि सव्वजीवाणं सव्वे जीवा खमंतु मे।
सभी जीवों को मैं क्षमा करता हूँ, सभी जीव मुझे क्षमा करें।
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2.खमा वरं सुट्ठु वि तवाओ।
क्षमा बड़े से बड़े तप से भी श्रेष्ठ है।
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खमंति-खामयंति तरंति भवसायरं।
जो क्षमा करते हैं तथा कराते हैं, वे संसार सागर पार करते हैं।
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खमा वीर-भूसणं।
क्षमा वीर पुरुषों का आभूषण है।
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बहुहा धम्माणुरायी खमासीलो।
बहुधा धर्मानुरागी लोग क्षमाशील होते हैं।
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खमा महप्पाणं सहजगुणो जहा सप्पीए सणेहत्तं।
क्षमा महात्माओं का सहज गुण है, जैसे घी में स्निग्धता।
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खमाए भूसदि पुरिसा जहा मणिणा सप्पो।
क्षमा से पुरुष विभूषित होते हैं, जैसे मणि से सर्प।
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खमासीला रयणं व दुल्लहा।
क्षमाशील रत्न के सदृश लोक में दुर्लभ हैं।
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खमा-सत्थेण विणस्सदि वेरं।
क्षमा रूपी शस्त्र से शत्रुता का नाश होता है।
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खमव्व ण को वि गुणो ।
क्षमा के समान कोई भी गुण नहीं है।
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ण कुप्पंति महरिसी खमणगुणवियाणया साहू।
क्षमागुण के ज्ञानी महर्षि मुनि क्रोध नहीं करते हैं।
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सव्वं खमेदुं समत्था मुणी।
सभी को क्षमा करने में मुनि समर्थ होते हैं।
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संकलन
डॉ. सुमत कुमार जैन
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