*ऐसे भक्तों से भी सावधान रहे समाज* मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम सीता के वियोग में भटकते हुए पम्पा सरोवर पर पहुँचते हैं।सरोवर की शोभा उसकी पवित्रता और वहाँ स्थित वन्यप्राणियों को देख कर क्षण भरके लिए वे सीता विरह की कातरता को भूल जाते हैं। अकस्मात् उनका ध्यान एक बगुली पर जाता है जो एक पैर पर खड़ी हो शान्तचित्त ध्यानमग्न थी। उसकी तन्मयता को देख कर श्री राम बोल पड़ते हैं-- हे लक्ष्मण! देखो,यह बगुली परमधार्मिक है।यह जीव वध की आशंका से आगे नहीं बढ़ रही है,एक पग पर चुप खड़ी है। अपने पैरों को धीरे धीरे आगे बढ़ा रही है---- *पश्य लक्ष्मण! पम्पाया: बको परम धार्मिक:*। *शनैः शनैः पदं धत्ते जीवानां बध शंकया* ।। लक्ष्मण जी इतने से ही खुश थे कि सीता विरह से अग्रज का मन थोड़ा दूसरी ओर तो हुआ । वातावरण अद्भुत था। शान्त वातावरण को भेदती हुई एक आवाज गूंज उठी। बोलने वाली सरोवर की ही एक मछली थी-- हे राम! आप इस बगुली को नहीं जानते।यह बहुत धूर्त है।इसने मेरे कुल को समाप्त कर दिया। पडोसी ही पड़ोसी का चरित्र बेहतर ढंगसे जानता है।यह कोई तपस्विनी नहीं है। यह वातावरण में विश...