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जैन पुराणों में हनुमान

जैन मान्यता के अनुसार हनुमान ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
जैन मान्यता के अनुसार हर काल में 24 तीर्थंकर,12 चक्रवर्ती ,9 नारायण, 9 प्रतिनारायण,9 बलभद्र इस प्रकार 63 शलाका पुरुष होते हैं यह सभी उत्तम पदधारी उसी जन्म में या थोड़े से जन्म लेकर मोक्ष प्राप्त करते है। हनुमानजी 18 वें कामदेव थे वह बंदर नहीं थे, बल्कि वानर वंशी थे, अर्थात जैन रामायण (पद्मपुराण) के अनुसार इनके वंश के राज्य ध्वज में बंदर का चिन्ह था, इसलिए इनका कुुल वानर वंश के नाम से विख्यात है, इनके पिता राजकुमार पवन कुमार और माता अंजना थी बचपन में एक दिन जब हनुमान जी अपने मामा के विमान में बैठकर आकाश मार्ग से जा रहे थे तब खेल-खेल में उछलकर ,वे नीचे पहाड़ पर गिर पड़े ,इससे इनको कोई हानि नहीं हुई, बल्कि पहाड़ ही टूट गया इनकी हड्डियां वजृ की थी । जैन मान्यता के अनुसार हनुमान जी बाल ब्रह्मचारी न होकर ग्रहस्थ थे ,उनके न हीं बंदर जैसा मुंह था न ही पूंछ थी उनका रंग रूप वानर जैसा नहीं था ।वह विद्याधारी थेे। विद्या के बल पर उन्होंने लंका में वानर का रूप रचा था उसके बाद उन्होंने राजपाट और स्त्री आदि का त्याग कर साधु हो गए और तपस्या करके श्रीराम की तरह उसी जन्म में मांगीतुंगी से मोक्ष पधारे। निर्वाण कांड....  
राम हनु सुग्रीव  सुडील, गवय गवाख्य नील महानील। कोड़ी 99 मुक्ति पयान, तुंगीगिरि वंदौ धरी ध्यान।।

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