*आचार्य समन्तभद्र और आचार्य अमृतचन्द्र*
-प्रो. वीरसागर जैन
आचार्य समन्तभद्र और आचार्य अमृतचन्द्र में प्रायः बहुत अधिक दूरी समझी जाती है | आचार्य समन्तभद्र न्याय के शिरोमणि विद्वान् समझे जाते हैं और आचार्य अमृतचन्द्र अध्यात्म के शिरोमणि विद्वान् समझे जाते हैं | एक एकदम तार्किक एवं नीरस समझे जाते हैं और दूसरे एकदम आध्यात्मिक एवं सरस | प्राय: लोग इन दोनों में पूर्व-पश्चिम जैसा अंतर समझते हैं | परन्तु यदि गहराई से देखें तो दोनों में बड़ी भारी समानता है, इतनी अधिक कि दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू लगते हैं, क्योंकि दोनों ही वस्तुतः अध्यात्म एवं न्याय दोनों से समन्वित जैनविद्या के मूर्धन्य आचार्य हैं | कोई भी केवल न्याय अथवा केवल अध्यात्म का विद्वान् नहीं है | दोनों ही के यहाँ दोनों का मणिकांचन संयोग है | आचार्य समन्तभद्र ने न्याय के आचार्य होते हुए भी एक पल को भी अध्यात्म का पल्ला नहीं छोड़ा है और आचार्य अमृतचन्द्र ने अध्यात्म के आचार्य होते हुए भी एक पल को भी न्याय का पल्ला नहीं छोड़ा है | दरअसल जैन विद्या है ही ऐसी, न्याय और अध्यात्म से समन्वित, किन्तु जो लोग इस रहस्य को नहीं जानते, वे आज या तो अकेले आचार्य समन्तभद्र को पढ़ते हैं या अकेले आचार्य अमृतचन्द्र को | जो आचार्य समन्तभद्र को पढ़ते हैं वे आचार्य अमृतचन्द्र को नहीं पढ़ते हैं और जो आचार्य अमृतचन्द्र को पढ़ते हैं वे आचार्य समन्तभद्र को नहीं पढ़ते | यह बड़ी विडम्बना है | जिस दिन इन दोनों का समन्वय होगा उस दिन जैन दर्शन ठीक से समझ में आएगा, जैन दर्शन की आराधना और प्रभावना दोनों ही बहुत उन्नति करेगी |
जन्मना क्षत्रिय और पंचाक्षरी नामवाले ये दोनों आचार्य जैन विद्या के सूर्य-चन्द्र हैं | इन दोनों ने न्याय का पुष्ट आधार देकर जैन धर्म-दर्शन-अध्यात्म की रक्षा करने में जो अप्रतिम योगदान दिया है, वह कभी विस्मृत नहीं किया जा सकता | ध्यान से देखा जाए तो इन दोनों आचार्यों की भाषा-शैली भी लगभग समान ही है | दोनों के ग्रन्थों में अनेक श्लोक समान भाव एवं भाषा वाले उपलब्ध होते हैं | भक्ति-अध्यात्म-न्याय की पावन मन्दाकिनी प्रवाहित करने वाले ये दोनों आचार्य हमारे आदर्श बनें |
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