‘तुम्हारे महावीर से अलग हैं मेरे महावीर’
- कुमार अनेकांत©
महावीर को सब याद करते हैं
तुम भी मैं भी
तुम उन्हें इसलिए महावीर मानते हो
क्योंकि बचपन में एक सर्प आने पर
दूसरे बालकों की तरह वे डरे नहीं थे
नगर में हाथी के उपद्रव पर
सब भाग गए थे
लेकिन उन्होंने उसे काबू में कर लिया था |
और भी किस्से – कहानियाँ
हैं उनकी वीरता के
जिस कारण तुम कहते
उन्हें महावीर
मगर मेरे महावीर वह है
जो धर्म के साथ विज्ञान समझाते थे
जीवन का लक्ष्य आत्मज्ञान बतलाते थे
जब पूरी दुनिया ईश्वर को
सृष्टि का कर्त्ता मानती थी
निज पुरुषार्थ भूलकर
भाग्य भरोसे बैठी थी
धर्म के नाम पर
चारों ओर हिंसा फैली थी
अनासक्ति, वैराग्य के नाम पर
बस पाखंडियों की टोली थी
उस समय उनका अभ्युदय
एक दिव्य प्रकाश बना था
मिथ्वात्व दूर भगा कर आत्मा को
कर्मों से मुक्त किया था
खुद का खुदा खुद में ही बसा
ऐसा यथार्थ बताया
भगवान भरोसे बैठी जनता में
आत्मपुरुषार्थ जगाया
वस्त्रों से भी मोह छोड़कर
सच्चे फकीर बने थे
बस तब से ही वो मेरे
सच्चे महावीर बने थे |
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