नेमिनाथ/ अरिष्टनेमी २२ वे तीर्थंकर (इसवी सन पूर्व १०००-१५००)
मयूर मल्लिनाथ वग्यानी, सांगली महाराष्ट्र
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आज भगवान नेमिनाथ का मोक्ष कल्याणक दिवस है.
उनका जन्म गिरनार-काठियावाड़ (आधुनिक गुजरात का सौराष्ट्र प्रांत) में हुआ था। 22वें तीर्थंकर नेमिनाथजी का इतिहास हिंदू धर्मग्रंथों और अन्य धार्मिक साहित्य में येदु राजवंश के संस्थापक महाराजा वासु के वंश से जुड़ा है. ऋग्वेद में अनेक स्थानों पर उनका उल्लेख मिलता है। भगवान नेमिनाथ का उल्लेख यजुर्वेद और सामवेद में मिलता है. विद्वानों का मत है कि छांदोग्य-उपनिषद (ChhandogyaUpanishada III, 17,6) में वर्णित घोर अंगिरसा नेमिनाथ ही थे जिन्होंने कृष्ण को तप, दान, अहिंसा और सत्य बोलने का मार्ग सिखाया था।
Verse 3.17.6
तद्धैतद्घोर् आङ्गिरसः कृष्णाय देवकीपुत्रायोक्त्वोवाचापिपास एव स बभूव सोऽन्तवेलायामेतत्त्रयं प्रतिपद्येताक्षितमस्यच्युतमसि प्राणसंशितमसीति तत्रैते द्वे ऋचौ भवतः ॥ ३.१७.६ ॥
भाषांतर
अंगिरस के वंश के ऋषि घोरा ने देवकी के पुत्र कृष्ण को यह सत्य सिखाया, जिसके परिणामस्वरूप कृष्ण सभी इच्छाओं से मुक्त हो गए। तब घोरा ने कहा: 'मृत्यु के समय व्यक्ति को ये तीन मंत्र दोहराने चाहिए, आप कभी क्षय नहीं होते, आप कभी नहीं बदलते और आप जीवन का सार हैं।
The sage Ghora, of the family of Aṅgirasa, taught this truth to Kṛishṇa, the son of Devakī. As a result, Kṛishṇa became free from all desires. Then Ghora said: ‘At the time of death a person should repeat these three mantras: “You never decay, you never change, and you are the essence of life.
डॉ। राधाकृष्ण का ऐतिहासिक शोध, डॉ. पी.एन. विद्यालंकार, कर्नल टॉड, डाॅ. हैरिसन, प्रो. वार्नेट आदि ने नेमिनाथ को ऐतिहासिक पुरुष स्वीकार किया है।
नेमिनाथजी की ऐतिहासिकता के बारे में लेखक आचार्य श्री हस्तीमलजी महाराज कहते हैं कि अरिष्टनेमि का उल्लेख ऋग्वेद के अलावा वैदिक साहित्य के अन्य ग्रंथों में भी किया गया है. ऐसा प्रतीत होता है कि तीर्थंकर अरिष्टनेमि का प्रभाव भारत के बाहर भी देखने को मिलता है ।कर्नल टोडके के शब्द हैं, - "मुझे ऐसा लगता है कि प्राचीन काल में चार बुद्ध या मेघावी महापुरुष हुए हैं। उनमें से पहले आदिनाथ थे, दूसरे नेमिनाथ थे. नेमिनाथहि स्केन्डोनेविया(Scandinavia) निवासियों के प्रथम ''ओडिन'' और चिनियों के प्रथम ''फो'' देवता थे. धर्मानंद कौशाम्बी ने घोर आंगिरसको नेमिनाथ माना है! (जैन धर्मका मौलिक इतिहास,प्रथम भाग, तीर्थकर खंड, लेखक आचार्य श्री हस्तीमलजी महाराज,'''पुष्ठ ४२६)
कर्नल टॉड नेमिनाथ ओडिन को स्कैंडिनेविया (यूरोप के स्कैंडिनेविया देश डेनमार्क, फिनलैंड, आइसलैंड, नॉर्वे और स्वीडन हैं) के निवासियों का देवता मानते हैं. इतिहासकारों का मानना है कि भगवान ओडिन ईसा पूर्व से हजारों साल पहले स्कैंडिनेविया मे हुए थे. ओडिन प्राचीन काल से ही साहित्य में नायकों के संरक्षक के रूप में प्रकट हुए हैं।इसके अलावा चीनी देवता "फो" थे। उन्हें भी कर्नल टॉड नेमिनाथ मानते हैं। इतिहासकार धर्मानंद कौशांबी ने नेमिनाथ को महाभारत में भगवान कृष्ण के गुरु घोर अंगिरस माना है.
अरिष्टनेमि यादव कुल के थे। हरिवंश पुराण में यादवों की वंशावली का पता चलता है, जिससे पता चलता है कि श्रीकृष्ण और तीर्थंकर अरिष्टनेमि चचेरे भाई थे. श्री अरिष्टनेमि के पिता राजा समुद्रविजय सौरिपुरा (मथुरा के पास) के शासक थे और अंधकविशिका के बड़े पुत्र थे। कृष्ण के पिता वासुदेव अंधकविशि के दस पुत्रों में सबसे छोटे थे और नेमिनाथ के पिता समुद्रविजय के भाई थे. दीक्षा के बाद अंधकविशि जैन श्रमण बन गये.
नीचे उनकी वंशावली दि है,,
जैन और वैदिक परंपरा के अनुसार नेमिनाथ और श्रीकृष्ण का वंश वृक्ष
जैन परंपरा वैदिक परंपरा
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यदु यदु
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सौरी कोष्ट्र
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अंधकवृष्णी सुधाजीत _ _ _ देवमीठुश
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समुद्राविजय _ वसुदेव वृष्णी _ चित्रक शूर
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नेमिनाथ श्रीकृष्ण _ बलराम स्वफलक नेमिनाथ वसुदेव १० भाई
नेमिनाथ का जन्म राजा समुद्रविजय और रानी शिवदेवी से हुआ था। ज्येष्ठ अरिष्टनेमि का जन्म श्रावण शीला पंचमी को हुआ था. माँ के गर्भ मे बालक के जन्म लेने के बाद से ही शाही परिवार परेशानी मुक्त जीवन व्यतीत किया था। इसलिए उनका नाम अरिष्टनेमि पड़ा.
श्री नेमिनाथजी का विवाह समारोह द्वारका में आयोजित किया गया था. राजा उग्रसेन की पुत्री राजमती दुल्हन थी. जब श्री नेमिनाथ विवाह मंडप की ओर जा रहे थे तो सड़क पर एक स्थान पर कई जानवर लाकर बांध दिये गये थे और वे चीख-चिल्ला रहे थे. जब श्री नेमिनाथजी ने पूछा कि इस स्थान पर इतने सारे जानवर क्यों बांधे गए हैं, तो पहरेदारों ने कहा कि ये जानवर आपके विवाह में लोगों को खिलाने के लिए लाए गए हैं. विवाह में इतने सारे जानवरों की हिंसा देखकर वह मानसिक रूप से सदमे में आ गया और तुरंत तपस्या के लिए गिरनार पर्वत पर चले गये और उसी स्थान पर तपस्या करने लगे।. उत्तरपुराण और हरिवंशपुराण में उनके विवाह कार्यक्रम और विवाह से पहले संन्यास का वर्णन है.
संन्यास लेने के बाद अरिष्टनेमि ने आत्मज्ञान प्राप्त करने के लिए तपस्या की और 54 दिनों तक ध्यान में रहे।अतः वे एक स्थान से दूसरे स्थान तक अहिंसा और अपरिग्रह का प्रचार करने लगे। उन्होंने अपने चचेरे भाई श्रीकृष्ण और उनकी रानियों को भी उपदेश दिया। मध्य काल में पांडवों और कौरवों के साथ भयानक युद्ध हुआ और सर्वनाश हुआ।यादवों की द्वारका जलकर खाक हो गयी. कृष्ण, बलराम और यादव द्वारका से बाहर आये।रास्ते में जरत्कुमार का तीर कृष्ण के पैर में लगा और कृष्ण घायल हो गये. यह घाव ठीक नहीं हुआ और वहीं उनकी मृत्यु हो गई. बाद में बलराम और कुछ यादवों ने दीक्षा ली और निर्वाणकांड तीर्थवंदना में वर्णित अनुसार नासिक के पास गजपंत में मोक्ष चले गए.
इतिहासकारों के अनुसार उनका अनुमानित समय 1000 से 1500 ईसा पूर्व था। यदि श्रीकृष्ण की ऐतिहासिकता को स्वीकार किया जाए तो हम यह भी मान सकते हैं कि 22वें तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ केवल एक मिथक नहीं बल्कि एक ऐतिहासिक पुरुष थे। तीर्थंकर नेमिनाथ की ऐतिहासिकता सिद्ध हो चुकी है। इस प्रकार, नेमिनाथ के एक ऐतिहासिक व्यक्ति J में कोई संदेह नहीं है, लेकिन उनकी तिथि तय करने में कुछ कठिनाई है। उन्हें कृष्ण का समकालीन कहा जाता है। महाभारत की सटीक तारीख पर विद्वानों में मतभेद है जो 1000 ईसा पूर्व से 1500 ईसा पूर्व तक है.
नेमिनाथजी का निर्वाण गिरनार पर्वत पर हुआ था। ये इतिहासिक तत्य है. गिरनार पर्वत हजारों वर्षों से जैनियों का तीर्थस्थान रहा है.
महावीर की शिक्षाओं पर आधारित जैन ग्रंथ पहली शताब्दी की शुरुआत में तांबे की प्लेटों पर पांडुलिपियों में लिखे गए थे। आचार्य भूतबलि मूल आगम का ज्ञान रखने वाले अंतिम तपस्वी थे। बाद में कुछ विद्वान आचार्यों ने इसका संकलन किया। महावीर के निर्वाण के बाद 683 वर्ष बीत गए, ज्ञान में धीरे-धीरे लुप्त होणे लगा था.
जब आचार्य धरसेन को लगा कि उनका बचा हुआ ज्ञान भी लुप्त होने वाला है, तो उन्होंने दो सर्वश्रेष्ठ आचार्यों भूतबली और पुष्पदंत को गिरनार पर्वत पर आमंत्रित किया और उन्हें अपना शिष्य बनाया। दोनों आचार्यों ने माला प्राकृत भाषा में सबसे शुरुआती ग्रंथों में से एक षट्खंडागम (Ṣaṭkhṅḍāgama) लिखा। इस पुस्तक का अंतिम खंड भूतबलि आचार्य द्वारा रचित है और इसमें 41,000 श्लोक हैं.
दुर्भाग्य से आज यह क्षेत्र हमारे हाथ से चला गया है। जहां नेमिनाथजी के चरण हैं, वहां दत्त के चरण रखकर जबरदस्ती कब्जा किया गया हैं। आज वहां जैनियों को नेमिनाथ का नाम लेने की भी मनाही है।
आज हजारों की संख्या में जैन समुदाय निर्वाण लड्डू चढ़ाने के लिए गिरनार में इकट्ठा हुआ है. लेकिन पांचवें टोंक पर जहां नेमिनाथजी के चरण हैं, वहां जैनियों को लड्डू चढ़ाना और अभिषेक करनेसे मना कर दिया गया है । वहां साधुओं का झुंड है.वे लोग हमारे समाज के लोगों पर और हमारे महाराजों के ऊपर हमले हो रहे हैं. धमकियां दी जा रही हैं.
हम आज अल्पसंख्यक हैं और विभिन्न जाति संप्रदायों में बंटे हुए हैं। चूंकि हमारे पास सरकार पर दबाव बनाने के लिए वोट बैंक नहीं है, इसलिए हमारा समाज उन पर दबाव बनाने के लिए कमजोर पड़ रहा है.
हम इस देश के मूलनिवासी हैं. हम आदिनाथ, महावीर के वंशज हैं। हम अहिंसावादी हैं. हमें अहिंसा के सिद्धांत पर लढना चाहिए। महावीर के कहे अहिंसा के सिद्धांत पर ही महात्मा गांधी और नेल्सन मंडेला ने भारत और दक्षिण अफ्रीका को आजादी दिलाई। अब समय है, हमें जात पात को भूल जाना चाहिए और केवल जैन बनकर गिरनार के लिए लड़ना चाहिए, तभी हमारा धर्म, हमारा क्षेत्र और मंदिर बचेंगे।
यदि वे जय गिरनारी कहते हैं, तो हम उन्हें जय नेमिनाथ कहकर उत्तर दें.
जय जिनेन्द्र
मयूर मल्लिनाथ वग्यानी, सांगली महाराष्ट्र
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