Skip to main content

पुरानी दिल्ली के जैन मंदिर

🔔 राजधानी दिल्ली की पुरानी गलियाँ न केवल इतिहास की कहानियाँ कहती हैं, बल्कि आस्था और चमत्कारों से भरे हुए मंदिरों को भी समेटे हुए हैं। पुरानी दिल्ली की संकरी गलियों में विशालतम मंदिरों की इस यात्रा में आपको जैनधर्म की समृद्ध परंपरा, अद्भुत वास्तुकला और चमत्कारों के दर्शन होंगे। तो चलिए, इस आध्यात्मिक जिनदर्शन यात्रा पर चलते हैं - और यदि आपने इन तीर्थ - मंदिरों के दर्शन किये हैं तो अपनी निजी अनुभूति अवश्य बतायें - 

स्थान: पुरानी दिल्ली, पिनकोड 110006
संभावित यात्रा की अवधि: 1 से 1.5 घंटे
अनुमानित दूरी: केवल 1 किलोमीटर

चलो पुरानी दिल्ली की गलियों में प्राचीन जैन धरोहरों की अद्भुत यात्रा पर निकलें!

1. श्री दिगम्बर जैन लाल मंदिर

(दिल्ली की शान, लाल किले के सामने)
जैसे ही आप चाँदनी चौक में कदम रखते हैं, आपकी नजर लाल किले के सामने खड़े भव्य श्री दिगम्बर जैन लाल मंदिर पर जाती है।
•यहाँ विराजमान हैं चमत्कारी श्री 1008 पार्श्वनाथ भगवान और माँ पद्मावती।
•विश्व प्रसिद्ध पक्षी अस्पताल, जहाँ घायल पक्षियों का निशुल्क इलाज होता है।
•ध्यान केंद्र और चमत्कारों की अद्भुत कहानियाँ।

यहाँ आते ही आपको शांति और एक गहरी आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव होता है।

2. श्री दिगम्बर जैन बड़ा मंदिर (कूंचा सेठ, दरीबा कलां)

अब हम चलेंगे दरीबा कलां की ओर, जहाँ भव्य श्री दिगम्बर जैन बड़ा मंदिर आपका स्वागत करता है।
•यहाँ के वेदी में श्याम वर्ण श्री आदिनाथ भगवान विराजमान हैं।
•नक्काशी युक्त वेदी और नव निर्मित संरचना में 24 तीर्थंकरों के दर्शन।

यह मंदिर आपको प्राचीन और आधुनिक शिल्पकला का संगम दिखाता है।

3. श्री दिगम्बर जैन छोटा मंदिर (धर्मपुरा)

थोड़ा आगे बढ़ने पर आता है श्री दिगम्बर जैन छोटा मंदिर।
•यहाँ विराजमान हैं मूलनायक श्री 1008 चंद्रप्रभ भगवान।
•अनेक प्राचीन पाषाण और धातु की प्रतिमाएँ आपको इतिहास की गहराइयों में ले जाती हैं।

4. श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर (सतघरा)

यहाँ कदम रखते ही आपकी नजर छोटे से, पर भव्य मानस्तंभ पर टिक जाएगी।
•कई जिनबिंबों के दर्शन।
•छोटा मंदिर, लेकिन बड़ा आध्यात्मिक प्रभाव।

5. श्री दिगम्बर जैन नया मंदिर (धर्मपुरा)

इस मंदिर में कदम रखते ही आप 225 साल पुरानी वास्तुकला का अद्भुत नमूना देखेंगे।
•यहाँ आज भी बिना बिजली का प्रयोग होता है, और इसकी नक्काशी ताजमहल को भी मात देती है।
•23 फुट का मानस्तंभ और श्री 1008 आदिनाथ भगवान का मूलनायक रूप।

यह मंदिर आपको समय के पहियों को पीछे घुमाकर इतिहास के स्वर्णिम युग में ले जाता है।

6. श्री दिगम्बर जैन पंचायती मंदिर (गली हनुमान प्रसाद)

अब हम गली हनुमान प्रसाद में प्रवेश करेंगे, जहाँ यह भव्य मंदिर स्थित है।
•यहाँ विराजमान हैं श्री 1008 पार्श्वनाथ भगवान।
•विशालकाय जिनबिंब और बाहुबली भगवान की खड्गासन प्रतिमा।
•हर 12 साल में यहाँ महामस्तकाभिषेक का आयोजन होता है।

यहाँ आकर आप सोचने पर मजबूर हो जाएंगे कि इतने विशालकाय जिनबिंब इन सकरी गलियों में कैसे आए होंगे। यह किसी दैवीय चमत्कार से कम नहीं।

7. श्री दिगम्बर जैन मेरू मंदिर

यह मंदिर अपनी अनोखी संरचना और अद्भुत शिल्पकला के लिए प्रसिद्ध है! 
•विशाल पाषाण से निर्मित नंदीश्वर द्वीप और पंच मेरु।
•महावीर भगवान की भव्य खड्गासन प्रतिमा।

8. श्री पद्मावती पुरवाल दिगम्बर जैन मंदिर

यह मंदिर आपको अपनी स्वर्णमयी चित्रकारी और शांति से मंत्रमुग्ध कर देगा।
•मूलनायक श्री 1008 महावीर भगवान का अद्भुत रूप।
•स्वर्णिम चित्रकला आपको अपार आनंद की अनुभूति कराएगी।

9. श्री खण्डेलवाल दिगम्बर जैन मंदिर (वैदवाड़ा)

इस मंदिर में प्राचीन जिनबिंबों के दर्शन कर मन को शांति मिलती है।

10. श्री दिगम्बर जैन जैसवाल मंदिर (वैदवाड़ा)

•मुख्य वेदी के अंदर एक और वेदी का अनूठा निर्माण।
•दुर्लभ जिनबिंब।

यात्रा का समापन : 

यह छोटी-सी आध्यात्मिक जिनदर्शन यात्रा आपकी आत्मा को शांति, मन को सुकून और प्राचीन जैन संस्कृति का गौरव अनुभूति कराएगी।
दिल्ली की इन गलियों में छिपी ये धरोहरें केवल जैन धर्म के अनुयायियों के लिए ही नहीं, बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए हैं, जो आध्यात्म और कला से प्रेम करता है। तो देर किस बात की ? चलिए, इन अनमोल धरोहरों के दर्शन करें और इस यात्रा को यादगार बनाएं - 

Shri Yog Bhooshan Maharaj


Comments

Popular posts from this blog

जैन ग्रंथों का अनुयोग विभाग

जैन धर्म में शास्त्रो की कथन पद्धति को अनुयोग कहते हैं।  जैनागम चार भागों में विभक्त है, जिन्हें चार अनुयोग कहते हैं - प्रथमानुयोग, करणानुयोग, चरणानुयोग और द्रव्यानुयोग।  इन चारों में क्रम से कथाएँ व पुराण, कर्म सिद्धान्त व लोक विभाग, जीव का आचार-विचार और चेतनाचेतन द्रव्यों का स्वरूप व तत्त्वों का निर्देश है।  इसके अतिरिक्त वस्तु का कथन करने में जिन अधिकारों की आवश्यकता होती है उन्हें अनुयोगद्वार कहते हैं। प्रथमानुयोग : इसमें संयोगाधीन कथन की मुख्यता होती है। इसमें ६३ शलाका पुरूषों का चरित्र, उनकी जीवनी तथा महापुरुषों की कथाएं होती हैं इसको पढ़ने से समता आती है |  इस अनुयोग के अंतर्गत पद्म पुराण,आदिपुराण आदि कथा ग्रंथ आते हैं ।पद्मपुराण में वीतरागी भगवान राम की कथा के माध्यम से धर्म की प्रेरणा दी गयी है । आदि पुराण में तीर्थंकर आदिनाथ के चरित्र के माध्यम से धर्म सिखलाया गया है । करणानुयोग: इसमें गणितीय तथा सूक्ष्म कथन की मुख्यता होती है। इसकी विषय वस्तु ३ लोक तथा कर्म व्यवस्था है। इसको पढ़ने से संवेग और वैराग्य  प्रकट होता है। आचार्य यति वृषभ द्वारा रचित तिलोयपन...

सम्यक ज्ञान का स्वरूप

*सम्यक ज्ञान का स्वरूप*  मोक्ष मार्ग में सम्यक ज्ञान का बहुत महत्व है । अज्ञान एक बहुत बड़ा दोष है तथा कर्म बंधन का कारण है । अतः अज्ञान को दूर करके सम्यक ज्ञान प्राप्त करने का पूर्ण प्रयास करना चाहिए । परिभाषा -  जो पदार्थ जैसा है, उसे वैसे को वैसा ही जानना, न कम जानना,न अधिक जानना और न विपरीत जानना - जो ऍसा बोध कराता है,वह सम्यक ज्ञान है । ज्ञान जीव का एक विशेष गुण है जो स्‍व व पर दोनों को जानने में समर्थ है। वह पा̐च प्रकार का है–मति, श्रुत, अवधि, मन:पर्यय व केवलज्ञान। अनादि काल से मोहमिश्रित होने के कारण यह स्‍व व पर में भेद नहीं देख पाता। शरीर आदि पर पदार्थों को ही निजस्‍वरूप मानता है, इसी से मिथ्‍याज्ञान या अज्ञान नाम पाता है। जब सम्‍यक्‍त्व के प्रभाव से परपदार्थों से भिन्न निज स्‍वरूप को जानने लगता है तब भेदज्ञान नाम पाता है। वही सम्‍यग्‍ज्ञान है। ज्ञान वास्‍तव में सम्‍यक् मिथ्‍या नहीं होता, परन्‍तु सम्‍यक्‍त्‍व या मिथ्‍यात्‍व के सहकारीपने से सम्‍यक् मिथ्‍या नाम पाता है। सम्‍यग्‍ज्ञान ही श्रेयोमार्ग की सिद्धि करने में समर्थ होने के कारण जीव को इष्ट है। जीव का अपना प्रतिभ...

जैन चित्रकला

जैन चित्र कला की विशेषता  कला जीवन का अभिन्न अंग है। कला मानव में अथाह और अनन्त मन की सौन्दर्यात्मक अभिव्यक्ति है। कला का उद्भव एवं विकास मानव जीवन के उद्भव व विकास के साथ ही हुआ है। जिसके प्रमाण हमें चित्रकला की प्राचीन परम्परा में प्रागैतिहासिक काल से ही प्राप्त होते हैं। जिनका विकास निरन्तर जारी रहा है। चित्र, अभिव्यक्ति की ऐसी भाषा है जिसे आसानी से समझा जा सकता है। प्राचीन काल से अब तक चित्रकला की अनेक शैलियां विकसित हुईं जिनमें से जैन शैली चित्र इतिहास में अपना विशिष्ट स्थान रखती है। जैन चित्रकला के सबसे प्राचीन चित्रित प्रत्यक्ष उदाहरण मध्यप्रदेश के सरगुजा राज्य में जोगीमारा गुफा में मिलते है। जिसका समय दूसरी शताब्दी ईसापूर्व है।१ ग्यारहवीं शताब्दी तक जैन भित्ति चित्र कला का पर्याप्त विकास हुआ जिनके उदाहरण सित्तनवासल एलोरा आदि गुफाओं में मिलते है। इसके बाद जैन चित्रों की परम्परा पोथी चित्रों में प्रारंभ होती है और ताड़पत्रों, कागजों, एवं वस्त्रों पर इस कला शैली का क्रमिक विकास होता चला गया। जिसका समय ११वीं से १५वी शताब्दी के मध्य माना गया। २ जैन धर्म अति प्राचीन एवं अहिंसा प्र...