युग-चिंतक सन्त शिरोमणि:आचार्यश्री विद्यासागर जी मुनिराज प्रो. फूलचन्द जैन प्रेमी, वाराणसी परमपूज्य संत शिरोमणि आचार्यश्री विद्यासागरजी मुनिराज सम्पूर्ण देश में सर्वोच्च संयम साधना और अध्यात्म जगत के मसीहा माने जाते थे। उनका बाह्य व्यक्तित्व भी उतना ही मनोरम था,जितना अन्तरंग । संयम साधना और तपस्वी जीवन में वे व्रज्र से भी कठोर हैं । किन्तु उनके मुक्त हास्य और सौम्य मुख मुद्रा से उनके सहज जीवन में पुष्पों की कोमलता झलकती है । जहाँ एक ओर उनकी संयम साधना, मुनि जीवन की चर्या, तत्त्वदर्शन एवं साहित्य सपर्या में आचार्य कुन्दकुन्द प्रतिविम्बित होते हैं; वहीँ दूसरी ओर उनकी वाणी में आचार्य समन्तभद्र स्वामी जैसी निर्भीकता, निःशंकता, निश्चलता, निःशल्यता परिलक्षित होती है । आप माता-पिता की द्वितीय संतान हो कर भी अद्वितीय संतान हैं । मूलाचार में वर्णित श्रमणाचार का पूर्णतः पालन करते हुए आप राग, द्वेष, मोह आदि से दूर इन्द्रियजयी, नदी की तरह प्रवहमान, पक्षियों की तरह स्वच्छन्द, अनियत विहारी, निर्मल, स्वाधीन, चट्टान की तरह अविचल रहते हैं। कविता की तरह रम्य, ...