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*13-भगवान महावीर (जैन धर्म) और गौतम बुद्ध (बौद्ध धर्म )*
जैन धर्म के वर्तमान 24 तीर्थंकर में से 24वें व अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर हैं। उन्हें जैन परंपरा में इस युग के सबसे बड़े भगवान माना जाता है, जिन्होंने सर्वज्ञता और फिर मोक्ष प्राप्त किया। भगवान महावीर का जन्म छठी शताब्दी ईसा पूर्व के आसपास वैशाली राज्य में एक शाही परिवार में हुआ था, जो अब भारत के बिहार राज्य में है। माना जाता है कि तीर्थंकर के रूप में भगवान महावीर ने जैन समुदाय को पुनर्जीवित और पुनर्गठित किया था, उनकी शिक्षाएँ जैन सिद्धांत का मूल हैं। जैन अनुयायियों द्वारा प्रतिवर्ष महावीर जयंती के उत्सव के दौरान उनके जीवन और शिक्षाओं का स्मरण किया जाता है।
भगवान महावीर के करोड़ों वर्ष पूर्व वर्तमान चौबीसी (24 तीर्थंकर भगवान) में पहले भगवान ऋषभ देव हुए हैं. जैन दर्शन की मान्यताओं के अनुसार इसके भी पूर्व भूतकालीन चौबीसी (24 तीर्थंकर भगवान) हुए हैं और अगले युग में जैन दर्शन की शिक्षा देने के लिए भविष्य में भी चौबीसी (24 तीर्थंकर भगवान) विराजमान होंगे. इसीलिए जैन दर्शन का सदैव अस्तित्व था है और रहेगा. जैन धर्म को इसलिए सार्वभौमिक और अनादिनिधन धर्म कहा जाता है. अतः ,भगवान महावीर को जैन
धर्म का संस्थापक कहना शास्त्र सम्मत नहीं है, उन्हें जैन धर्म का इस युग का और एक शक्ति स्तम्भ और संवाहक जरूर कहा जा सकता है। गौतम बुद्ध अर्थात सिद्दार्थ को बौद्ध धर्म का संस्थापक माना जाता है जो भगवान महावीर के समकालीन थे। दोनों छठी शताब्दी ईसा पूर्व के आसपास प्राचीन भारत (अब बिहार राज्य) में रहते थे। बुद्ध प्रारंभिक हिंदू धर्म की कर्मकांडीय प्रथाओं की प्रतिक्रिया के रूप में उभरे और जैन मतावलम्बी के कुछ सामान्य सिद्धान्त और लक्ष्य साझा करते हुए पृथक अस्तित्व बनाते हुए जन मानस से सीधे जुड़े। जन्म और मृत्यु के चक्र (संसार) से मुक्ति (निर्वाण) की खोज और आध्यात्मिक प्रगति प्राप्त करने में व्यक्तिगत प्रयास पर जोर,कर्म और मुक्ति पर विचार, तपस्वी आचरण पर वो समान आधार पर उपदेश देते गए ,जो जैन दर्शन का हमेशा से आधार रहा है। हालाँकि, उनमें भी ईश्वर की अवधारणा, आत्मा का स्वरूप, तपस्वी आचरण तथा नैतिक आचरण में कुछ मूलभूत दार्शनिक अन्तर हमेशा बना रहा है, जो अभी भी स्पष्ट है।
*1. आत्मा के स्वरूप पर दृष्टि :*
भगवान महावीर (जैन धर्म) जैन धर्म के संवाहक होते हुए प्रत्येक जीवित प्राणी के लिए एक शाश्वत, अविनाशी आत्मा (जीव) के अस्तित्व में विश्वास करते थे। जैन धर्म के अनुसार, आत्मा कर्म से बंधी है, जो कर्मों के माध्यम से संचित होती है, और आत्मा को कर्म बंधन से मुक्त करके मुक्ति (मोक्ष) प्राप्त की जाती है।
गौतम बुद्ध (बौद्ध धर्म) ने शाश्वत आत्मा के अस्तित्व की स्पष्ट रूप से पुष्टि या खंडन नहीं किया। इसके बजाय, उन्होंने अनत्ता (अनात्मन) का सिद्धांत सिखाया, जो बताता है कि कोई स्थायी, अपरिवर्तनीय स्व या आत्मा नहीं है। बौद्ध धर्म अनित्यता की अवधारणा और इस विचार पर केंद्रित है कि स्वयं की धारणा से चिपके रहना दुख का एक स्रोत है।
*2. ईश्वर की अवधारणा पर विश्वास :*
भगवान महावीर ने देवताओं के अस्तित्व से इनकार नहीं किया, लेकिन यह कहा कि वे भी पुनर्जन्म के चक्र से बंधे थे और मुक्ति की प्राप्ति के लिए प्रासंगिक नहीं थे। जैन धर्म में, जिन अर्थात विजेता (मोक्ष) की स्थिति प्राप्त करने के लिए व्यक्ति के प्रयास पर ध्यान केंद्रित किया जाता है.
गौतम बुद्ध (बौद्ध धर्म) ने देवताओं की अवधारणा पर ध्यान केंद्रित नहीं किया और एक निर्माता भगवान के अस्तित्व पर चुप रहे। बौद्ध धर्म दुख को समाप्त करने और निर्वाण प्राप्त करने के साधन के रूप में चार आर्य सत्य और अष्टांगिक मार्ग पर जोर देता है, जो दुख की समाप्ति और अंतिम लक्ष्य है।
*3. कर्म और मुक्ति पर विचार:*
जैन धर्म में, कर्म एक भौतिक पदार्थ है जो किसी के कार्यों के कारण आत्मा से जुड़ जाता है। मुक्ति कठोर तपस्या, अहिंसा और कर्म कणों से आत्मा की शुद्धि के माध्यम से प्राप्त की जाती है।
गौतम बुद्ध (बौद्ध धर्म) में, कर्म को कारण और प्रभाव की एक प्रक्रिया के रूप में समझा जाता है जो किसी के पुनर्जन्म की प्रकृति को निर्धारित करता है। मुक्ति (निर्वाण) मध्य मार्ग का पालन करके प्राप्त की जाती है, इसमें अत्यधिक तपस्या और भोग दोनों से बचा जाता है, और अष्टांगिक मार्ग का अभ्यास करता है।
*4. तपस्वी आचरण का समर्थन:*
जैन धर्म अपनी अत्यधिक तपस्या और त्याग के लिए जाना जाता है, स्वयं भगवान महावीर ने भी कठोर तपस्या की थी। जैन अनुयायियों का मानना है कि तपस्या पिछले कर्मों को जलाने और नए कर्मों के संचय को रोकने में मदद करती है।
बुद्ध ने अत्यधिक तपस्या की लेकिन अंततः इसे आत्मज्ञान के मार्ग के रूप में अस्वीकार कर दिया। उन्होंने मध्य मार्ग की वकालत की, जो आत्म-पीड़ा से बचने के साथ आध्यात्मिक अनुशासन को संतुलित करता है।
*5. नैतिक आचरण का पालन :*
दोनों धर्म नैतिक आचरण पर जोर देते हैं, लेकिन जैन धर्म अहिंसा के बारे में विशेष रूप से सख्त है, एक ऐसी जीवन शैली का वर्णन करता है जो सूक्ष्मजीवों सहित सभी जीवित प्राणियों के प्रति अहिंसक दृष्टिकोण के पालन करने पर बहुत जोर देता है। छोटे-छोटे जीव को भी नुकसान पहुंचाने से बचने के लिए शाकाहार, शुद्ध आहार पानी को छानना,मुँह पर पट्टी बांधना और चलने से पहले जमीन को साफ करना जैसी प्रथाएं दैनिक क्रियाओं में अपनाई जाती हैं।
बौद्ध धर्म सभी प्राणियों के प्रति अहिंसा और करुणा की शिक्षा तो देता है, लेकिन आमतौर पर दैनिक आचरण की बारीकियों के बारे में कम निर्देशात्मक है। कार्यों के पीछे के इरादे और ज्ञान, नैतिक आचरण और मानसिक अनुशासन, खान -पान का पालन आदि पर पर्याप्त उदारवादी दृष्टिकोण होता है.
अतः, स्पष्ट है भगवान महावीर जैन धर्म को सैद्धांतिक रूप से धारण कर युग प्रवर्तक कहलाये और गौतम बुद्ध सामाजिक विसंगतियों को दूर करने वाले एक बड़े समाज सुधारक, उन्होंने आध्यात्मिक मुक्ति का एक ऐसा मार्ग प्रदान करना चाहा जो जाति या सामाजिक स्थिति की परवाह किए बिना सभी लोगों के लिए सुलभ हो। उनकी उदार और अपेक्षाकृत लचीली समाज व्यवस्था तथा उसमें समयानुकूल सुधारों के कारण बौद्ध शिक्षाओं का भारत और उसके बाहर के धार्मिक और दार्शनिक परिदृश्य पर गहरा प्रभाव पड़ा है, जिससे इस धर्म को फैलने का अवसर मिला। जबकि, भौतिक संसार में जैन धर्म अपनी वैयक्तिक तथा तटस्थ प्रकृति के कारण स्थायी मुक्ति की चाह रखने वाले लोगों की आस्था को जीवित रखता हुआ भारतवर्ष में भी संख्यात्मक रूप से सिमटता चला गया.
🖋️आभार (6अप्रैल, 2024)
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