*⭐पुरुरवा भील की पर्याय से श्री वर्धमान भगवान की पर्याय में जन्म तक भगवान के असंख्यात भवों का वर्णन*
1️⃣ पुरुरवा भील
2️⃣ पहले सौधर्म स्वर्ग में देव
3️⃣ भरत का पुत्र मरीचि
4️⃣ पांचवें ब्रह्म स्वर्ग में देव
5️⃣ जटिल ब्राह्मण
6️⃣ पहले सौधर्म स्वर्ग में देव
7️⃣ पुष्यमित्र ब्राह्मण
8️⃣ पहले सौधर्म स्वर्ग में देव
9️⃣ अग्निसह ब्राह्मण
🔟 तीसरे सनत्कुमार स्वर्ग में देव
1️⃣1️⃣ अग्निमित्र ब्राह्मण
1️⃣2️⃣ चौथे महेन्द्र स्वर्ग में देव
1️⃣3️⃣ भारद्वाज ब्राह्मण
1️⃣4️⃣ चौथे महेन्द्र स्वर्ग में देव
1️⃣5️⃣ कुमार्ग प्रकट करने के फलस्वरूप त्रस स्थावर योनियों में असंख्यात वर्षों तक परिभ्रमण
1️⃣6️⃣ स्थावर ब्राह्मण
1️⃣7️⃣ चौथे महेन्द्र स्वर्ग में देव
1️⃣8️⃣ विश्वनंदी
1️⃣9️⃣ दसवें महाशुक्र स्वर्ग में देव
2️⃣0️⃣ त्रिपृष्ठ नारायण
2️⃣1️⃣ सातवां नरक
2️⃣2️⃣ सिंह
2️⃣3️⃣ पहला नरक
2️⃣4️⃣ सिंह
2️⃣5️⃣ पहले सौधर्म स्वर्ग में सिंहकेतु नाम का देव
2️⃣6️⃣ कनकोज्ज्वल विद्याधर
2️⃣7️⃣ सातवें लांतव स्वर्ग में देव
2️⃣8️⃣ हरिषेण राजा
2️⃣9️⃣ दसवें महाशुक्र स्वर्ग में देव
3️⃣0️⃣ चक्रवर्ती प्रियमित्र
3️⃣1️⃣ बारहवें सहस्रार स्वर्ग में सूर्यप्रभ नाम का देव
3️⃣2️⃣ राजा नन्द (इस भव में दीक्षा धारण करके ग्यारह अङ्गों का ज्ञान प्राप्त किया एवं दर्शन विशुद्धि आदि सोलह कारण भवनाएं भाकर तीर्थंकर नाम कर्म प्रकृति का बंध कर लिया)
3️⃣3️⃣ सोलहवें अच्युत स्वर्ग के पुष्पोत्तर विमान में इन्द्र
3️⃣4️⃣माता प्रियंकारिणी के गर्भ में आषाढ़ शुक्ल षष्ठी तिथि के दिन मनोहर नामक चौथे प्रहर के अंत में तीर्थंकर वर्धमान भगवान का गर्भावतरण एवं तदनंतर नौ महीने पश्चात चैत्र शुक्ल त्रयोदशी के दिन उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में सत्यर्यमणि नामके शुभ योग में नाथ वंश एवं काश्यप गोत्र में श्री वर्द्धमान भगवान का जन्म हुआ ।
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