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Showing posts from 2021

जैन दर्शन में लेश्या का स्वरूप

लेश्या क्या है ? लेश्या का मतलब होता है,आत्मा का स्वभाव । आत्मा के स्वभाव से तात्पर्य है कि जिसके द्वारा आत्मा कर्मों से लिप्त होती है तथा मन के शुभ और अशुभ परिणाम को लेश्या कहते हैं। लेश्या 6 प्रकार की होती है। 1.कृष्ण लेश्या 2.नील लेश्या 3.कपोत लेश्या 4.तेजो लेश्या 5.पदम लेश्या 6.शुक्ल लेश्या इसके अलावा आत्मा के जो विचार हैं उनको भाव लेश्या कहते हैं और जिन पुदगलो के द्वारा आत्मा के विचार बदलते रहते हैं, उन पुदगलो को द्रव्य लेश्या कहते हैं, लेश्या के नाम द्रव्य लेश्या के आधार पर ही रखे गए हैं। तीन लेश्या अशुभ फलदाई होती हैं, और वह पाप का कारण बनती हैं और 3 लेश्या शुभ फलदाई होती हैं और वह पुण्य का कारण बनती है। तीन अशुभ लेश्या निम्नलिखित हैं 1.कृष्ण लेश्या 2.नील लेश्या 3.कपोत लेश्या तीन शुभ लेश्या निम्नलिखित हैं 1. तेजो लेश्या 2. पदम लेश्या 3. शुक्ल लेश्य लेश्याओ के लक्ष्ण निम्नलिखत प्रकार से होते है - 1. कृष्ण लेश्या- निर्दयी, पापी, जीवो की हत्या करने वाला ,असंयमित, अमर्यादित, इन्द्रियो को वश मे न रखने वाला आदि  उपरोक्त परिणामो से युक्त जीव कृष्ण लेश्या के परिणाम वाला होता है । 2. नील

श्री मल्लप्पा जी

- श्री मल्लप्पाजी का जन्म वीर निर्वाण संवत् २४४२, विक्रम संवत् १९७३, ईस्वी सन् १२ जून, १९१६ में ग्राम सदलगा, तालुका चिक्कोडी, जिला बेलगाम (वर्तमान नाम-बेलगावी), कर्नाटक प्रांत में हुआ था। आपके तीन पीढी पूर्व वंशज #आष्टा गाँव में निवास करते थे। वहाँ से शिवराया भरमगौड़ा चौगुले, प्रांत कर्नाटक, जिला बेलगाम, (बेलगावी) तालुका-चिक्कोड़ी, ग्राम सदलगा आए थे। इसलिए आपका गोत्र ‘#अष्टगे’ कहा जाने लगा।  दक्षिण भारत में चतुर्थ, पंचम, बोगार, कासार, सेतवाल आदि दिगंबर जैन प्रसिद्ध जातियाँ होती हैं। गाँव के जमीदारों की चतुर्थ जाति होती है। मल्लप्पाजी गाँव के ज़मीदार होने से चतुर्थ जाति के थे। सदलगावासी उन्हें मल्लिनाथजी के नाम से पुकारते थे।  उनके पिता सदलगा ग्राम के कलबसदि (पाषाण निर्मित) मंदिर के मुखिया श्री पारिसप्पाजी (पार्श्वनाथ) अष्टगे एवं माता श्रीमती काशीबाईजी थीं। पारिसप्पाजी के दो विवाह हुए थे। पहली पत्नी कम उम्र में स्वर्गवासी हो गई थीं। तब काशीबाई से उनका दूसरा विवाह हुआ था। दोनों पत्नियों से उनकी दस संतानें थीं। इनमें से चार दिन में तीन संतानों की मृत्यु प्लेग रूपी महामारी फैलने से हो गई,

"बाज़ के बच्चे मुँडेरों पर नही उड़ते..."

"बाज़ के बच्चे मुँडेरों पर नही उड़ते..." जिस उम्र में बाकी परिंदों के बच्चे चिचियाना सीखते है, उस उम्र में एक मादा बाज अपने चूजे को पंजे में दबोच कर सबसे ऊंचा उड़ जाती है। पक्षियों की दुनिया में ऐसी Tough and tight training किसी और की नही होती। मादा बाज अपने चूजे को लेकर लगभग 12 Km ऊपर ले जाती है, वह दूरी तय करने में उसे 7 से 9 मिनट का समय लेती है। यहां से शुरू होती है, उस नन्हें चूजे की कठिन परीक्षा। उसे अब यहां बताया जाएगा कि तू किस लिए पैदा हुआ है?तेरी दुनिया क्या है? तेरी ऊंचाई क्या है? तेरा धर्म बहुत ऊंचा है और फिर मादा बाज उसे अपने पंजों से छोड़ देती है। धरती की ओर ऊपर से नीचे आते वक्त लगभग 2 km उस चूजे को आभास ही नहीं होता कि उसके साथ क्या हो रहा है। 7 km के अंतराल के आने के बाद उस चूजे के पंख जो कंजाइन से जकड़े होते है, वह खुलने लगते हैं। लगभग 9 km आने के बाद उनके पंख पूरे खुल जाते हैं। यह जीवन का पहला दौर होता है, जब बाज का बच्चा पंख फड़फड़ाता है। अब धरती से वह लगभग 3000 मीटर दूर है, लेकिन अभी वह उड़ना नहीं सीख पाया है। अब धरती के बिल्कुल करीब आता है, जहां से वह अपने

क्या बुंदेलखंड में बिछुड़े जैन श्रावकों की घरवापसी संभव है ❓

क्या बुंदेलखंड में बिछुड़े जैन श्रावकों की घरवापसी संभव है ❓ #जैन_धर्म_विस्तार   जैन धर्म एक समय पूरे भारत का बहुसंख्यक धर्म था,सभी समुदायो,कुलो,जातियो में यह प्रचलित रहा,पर समय ने ऐसी करवट ली कि कई कारणों से यह सिमटता चला गया।    बुंदेलखंड भारत का हृदय क्षेत्र है,यहां हमारे लाखों वर्ष प्राचीन सिद्ध क्षेत्र है, निसंदेह प्राचीन काल में यहां जैन बहुसंख्यक रहे होंगे। पर आज स्थितियां अलग है,आज यहां जैन-धर्म 3-4 जातियों परवार,गोलापूरब,गोलालारे,गोलसिंघारे में ही शेष बचा है।    क्या हमें ज्ञात है कि आज के कुछ दशको पहले बुंदेलखंड में स्थित नेमा,असाटी,गहोई,ताम्रकार, धाकड़,अग्रवाल,कलार जैसी जातियो में जैन धर्म को मानने वाले लोग अच्छी-खासी संख्या में थे,और इसके साक्ष्य इनके द्वारा निर्मित करवाई गई प्रतिमाओ की प्रशस्तियो में मिलते हैं।   सन् 1912 में दिगंबर जैन समाज ने अपने स्तर पर जनगणना करवाई थी उसकी डायरेक्टरी देखने पर चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए, उसमें बुंदेलखंड क्षेत्र में जैन-धर्म मानने वालों में नेमा,असाटी,गहोई जैसी जातियों के लोग अच्छी-खासी संख्या में थे। फिर क्या कारण रहे कि यह जैन-धर्म

चौंसठ ऋद्धियां

*१. केवलज्ञान बुद्धि ऋद्धि -* सभी द्रव्यों के समस्त गुण एवं पर्यायें एक साथ देखने व जान सकने की शक्ति । *२. मन:पर्ययज्ञान बुद्धि ऋद्धि -*  अढ़ार्इ द्वीपों के सब जीवों के मन की बात जान सकने की शक्ति । *३. अवधिज्ञान बुद्धि ऋद्धि -*  द्रव्य, क्षेत्र, काल की अवधि (सीमाओं) में विद्यमान पदार्थो को जान सकने की शक्ति । *४. कोष्ठ बुद्धि ऋद्धि -* जिसप्रकार भंडार में हीरा, पन्ना, पुखराज, चाँदी, सोना आदि पदार्थ जहाँ जैसे रख दिए जावें, बहुत समय बीत जाने पर भी वे जैसे के तैसे, न कम न अधिक, भिन्न-भिन्न उसी स्थान पर रखे मिलते हैं; उसीप्रकार सिद्धान्त, न्याय, व्याकरणादि के सूत्र, गद्य, पद्य, ग्रन्थ जिस प्रकार पढ़े थे, सुने थे, पढ़ाये अथवा मनन किए थे, बहुत समय बीत जाने पर भी यदि पूछा जाए, तो न एक भी अक्षर घटकर, न बढ़कर, न पलटकर, भिन्न-भिन्न ग्रन्थों को उसीप्रकार सुना सकें ऐसी शक्ति । *५. एक-बीज बुद्धि ऋद्धि -* ग्रन्थों के एक बीज (अक्षर, शब्द, पद) को सुनकर पूरे ग्रंथ के अनेक प्रकार के अर्थो को बता सकने की शक्ति । *६. संभिन्न संश्रोतृत्व बुद्धि ऋद्धि -* बारह योजन लम्बे नौ योजन चौड़े क्षेत्र में ठहरनेवाली

अन्तर की मांग - क्षु.जिनेंद्र वर्णी

धर्म कर्म की जीवन में आवश्यकता ही क्या है ? जीवन के लिए यह कुछ उपयोगी तो भासता नहीं , यदि बिना किसी धार्मिक प्रवृत्ति के ही जीवन बिताया जाए तो क्या हर्ज है ? फिलोस्फर बनने के लिए कहा गया है ना मुझे , प्रश्न बहुत सुंदर है, और करना भी चाहिए था , अंतर में उत्पन्न हुए प्रश्न को कहते हुए शर्माना नहीं चाहिए । नहीं तो यह विषय स्पष्ट ना होने पाएगा । प्रश्न बेधड़क कर दिया करो डरना नहीं ।  वास्तव में ही धर्म की कोई आवश्यकता नहीं होती यदि मेरे अंदर की सभी अभिलाषाओं की पूर्ति साधारणतः हो जाती । कोई भी पुरुषार्थ किसी प्रयोजनवश ही करने में आता है किसी अभिलाषा विशेष की पूर्ति के लिए ही कोई कार्य किया जाता है । ऐसा कोई कार्य नहीं जो बिना किसी अभिलाषा के किया जा रहा हो । अतः उपरोक्त बात का उत्तर पाने के लिए मुझे विश्लेषण करना होगा अपनी अभिलाषाओं का । ऐसा कहने से अस्पष्टता कुछ ध्वनि अंतरंग में आती प्रतीत होगी इस रूप में कि 'मुझे सुख चाहिए ,मुझे निराकुलता चाहिए'-  यह ध्वनि छोटे बड़े सभी प्राणियों की चिर परिचित है ,क्योंकि कोई भी ऐसा नहीं है जो इस ध्वनि को बराबर उठते ना सुन रहा हो और य

वेज+नॉनवेज रेस्टोरेंट की वास्तविकता

*यह लेख आँखें खोल देने वाला है उनके लिए जो पूर्णतः शाकाहारी है और अज्ञानतावश ऐसे रेस्टोरेन्ट में खाना खाते हैं जहाँ शाकाहारी-मांसाहारी दोनों तरह का भोजन परोसा जाता है।* रेस्टोरेन्ट का अन्तःसच *लेखक : नितिन सोनी (१०२, पार्क रेजीडेंसी, २/४, रेसकोर्स रोड, इन्दौर (म. प्र.)* _______________________ *मैंने पिछले एक साल एक ऐसे रेस्टोरेन्ट में प्रबन्धन का कार्य सम्भाला, जहाँ पर शाकाहारी और माँसाहारी दोनों तरह का खाना बनता है। अपनी आँखों के सामने ऐसा प्रदूषित वातावरण देखना एक ऐसा पीड़ाजनक अनुभव है जिसे शब्दों में बयान करना बहुत ही कठिन है*। मैं स्वयं अपने को दोषी मानता हूँ, ऐसे नारकीय वातावरण में कार्य करने के लिये। परन्तु कभी-कभी पारिवारिक जिम्मेदारियाँ ऐसे काम करने को विवश कर देती है। मुझे इस अनुभव को आप तक पहुँचाना इसलिए जरुरी लगा क्योंकि वे लोग जो ऐसे रेस्टोरेन्ट में खाना खाते हैं और सोचते हैं कि वो पूर्णतः शाकाहारी भोजन ही ग्रहण कर रहे हैं तो वे पूर्णतः गलत है। आइये, आज आपको एक ऐसे ही शाकाहारी-माँसाहारी रेस्टोरेन्ट की रसोईघर यानि किचन की झलक दिखलाते हैं। सर्वप्रथम तो परिचित करवाते हैं किचन

मांसाहार की हानियाँ

मांसाहार के हानिकारक प्रभाव- मांसाहार में मात्र एक बडे पंचेन्द्रिय जीव की ही हत्या नहीं होती,बल्कि मांस कच्चा हो या पक्का उसमें असंख्य सुक्ष्म दो इंन्द्रिय वाले जीव जिन्हें हम बैक्टीरिया कहते हैं प्रतिपल उत्पन्न होते रहते हैं,मांसभक्षण से उन असंख्य जीवों की भी हत्या होती है। -WHO report के अनुसार नोनवेज के कारण 159 अलग-अलग प्रकार की बीमारियों का खतरा रहता है। जिनमें heart disease,B.P.,kidney, strock,आदि मुख्य हैं। -   covid,sarc जैसे कई वायरस nonveg से ही पैदा हुए हैं,E.coli & BSE वायरस बीफ याने कि गाय के मांस से, trichinosis पोर्क याने कि सुअर के मांस से, salmonella चिकन से,scrapie मटन याने कि बकरे के मांस से ऐसे कई जानलेवा वायरस की उत्पत्ति का कारण मात्र nonveg ही है। -मनुष्य की सरंचना भी शाकाहारी जीवो की श्रेणी में ही आती है,जिसके कई कारण हैं।जैसे- मांसाहारी जीवों की आंखें गोल होती है जो रात के अंधेरे में भी देख सकती है। लेकिन मनुष्य सहित सभी शाकाहारी जीवों की आंखें बादाम के आकार की होती है जो अंधेरे में नहीं देख सकती है। मांसाहारी जीव जीभ से पानी पीते हैं और उन्हें पसीना भी नही

नेहरू और जैन धर्म

जवाहर लाल नेहरू और जैन दर्शन से उनके अपूर्व लगाव पर विशेष जानकरियाँ……………………………! ^^^^^प०जवाहर लाल नेहरू अदभुत विशारद विद्वान व विश्व महान लेखकों में सुमार थे,उन्होंने अनेक महान ग्रंथ लिखे उनमे“The Discovery of India” विश्व के महानतम ग्रंथों में सुमार हैं,जिसमें उन्होंने तीन बात साहस के साथ बड़ी निडरता से वो बातें लिखी ज़ो शायद कोई भारत का प्रधान मंत्री नही लिख पाएगा,कि भारत का सबसे प्राचीन धर्म जैन धर्म हैं और भारत का मूल धर्म जैन धर्म ही था,ऋषभ सारी संस्कृतियों के आद्य प्रवर्तक थे और भारत का नाम ऋषभपुत्र भरत से ही पड़ा था,उन्हें जैन धर्म से बहुत ज़्यादा लगाव था और वे हमेशा जैन आचार्यों के दर्शन के लिए जाते रहते थे.भारतीय संविधान के लेखन के समय उसके कलेवर,आत्मा तथा मूल व मौलिक नीति निर्देशक पर महावीर वांगमय को अधिक महत्व देने का सबसे अधिक दबाव नेहरूजी का ही था.संविधान की मूलप्रति में दाँड़ी यात्रा को दर्शाने के लिए जिस चित्र का नेहरूजी के विशेष आग्रह पर संविधान के लिए बड़ी चाहत से चयन किया जो संविधान के पृष्ठ 151 पर अंकित हैं इसमें गाँधीजी को तिलक लगाती जिस महिला क़ो दर्शाया गया हैं वो

वैज्ञानिक बन

वैज्ञानिक बन  क्षुल्लक जिनेन्द्रवर्णी  धर्म का स्वरूप सांप्रदायिक नहीं वैज्ञानिक है । अंतर केवल इतना है कि लोक में प्रचलित विज्ञान भौतिक विज्ञान है और यह आध्यात्मिक विज्ञान । धर्म की खोज तुझे एक  वैज्ञानिक बनकर करनी होगी, सांप्रदायिक बनकर नहीं । स्वानुभव के आधार पर करनी होगी, गुरुओं के आश्रय पर नहीं । अपने ही अंदर से तत्व संबंधी क्या और क्यों उत्पन्न करके तथा अपने ही अंदर से उसका उत्तर लेकर करनी होगी किसी से पूछ कर नहीं । गुरु जो संकेत दे रहे हैं उनको जीवन पर लागू करके करनी होगी केवल शब्दों में नहीं । तुझे एक फ्लोसफर बनकर चलना होगा कूप मंडूक बनकर नहीं । स्वतंत्र वातावरण में जाकर विचरना होगा सांप्रदायिक बंधनों में नहीं । देख एक वैज्ञानिक का ढंग और सीख कुछ उससे । अपने पूर्व के अनेकों वैज्ञानिकों व फिलोसफरों द्वारा स्वीकार किए गए सर्व ही सिद्धांतों को स्वीकार करके उसका प्रयोग करता है  वह अपनी प्रयोगशाला में, और एक अविष्कार निकाल देता है । कुछ अपने अनुभव भी सिद्धांत के रूप में लिख जाता है, पीछे आने वाले वैज्ञानिकों के लिए । और वह पीछे वाले भी इसी प्रकार करते हैं , सिद्धांत में बराबर वृद्धि

जैन तीर्थंकरों की प्राचीनता

*1. शिवपुराण में लिखा है -* *अष्टषष्ठिसु तीर्थषु यात्रायां यत्फलं भवेत्।* *श्री आदिनाथ देवस्य स्मरणेनापि तदभवेत्॥* *अर्थ - अड़सठ (68) तीर्थों की यात्रा करने का जो फल होता है, उतना फल मात्र तीर्थंकर आदिनाथ के स्मरण करने से होता है।* *2. महाभारत में कहा है -* *युगे युगे महापुण्यं द्श्यते द्वारिका पुरी,* *अवतीर्णो हरिर्यत्र प्रभासशशि भूषणः ।* *रेवताद्री जिनो नेमिर्युगादि विंमलाचले,* *ऋषीणामा श्रमादेव मुक्ति मार्गस्य कारणम् ॥* *अर्थ - युग-युग में द्वारिकापुरी महाक्षेत्र है, जिसमें हरिका अवतार हुआ है। जो प्रभास क्षेत्र में चन्द्रमा की तरह शोभित है और गिरनार पर्वत पर नेमिनाथ और कैलास (अष्टापद) पर्वत पर आदिनाथ हुए हैं। यह क्षेत्र ऋषियों का आश्रय होने से मुक्तिमार्ग का कारण है।* *3. महाभारत में कहा है -* *आरोहस्व रथं पार्थ गांढीवं करे कुरु।* *निर्जिता मेदिनी मन्ये निर्ग्र्था यदि सन्मुखे ||* *अर्थ - हे अर्जुन! रथ पर सवार हो और गांडीव धनुष हाथ में ले, मैं जानता हूँ कि जिसके सन्मुख दिगम्बर मुनि आ रहे हैं उसकी जीत निश्चित है।* *4. ऋग्वेद में कहा है -* *ॐ त्रैलोक्य प्रतिष्ठितानां चतुर्विशति तीर्थंक

महाविघ्न पक्षपात - क्षुल्लक जिनेन्द्र वर्णी

*महाविघ्न पक्षपात*  धर्म के प्रयोजन व महिमा को जानने या सीखने संबंधी बात चलती है अर्थात धर्म संबंधी शिक्षण की बात है, वास्तव में यह जो चलता है इसे प्रवचन ना कहकर शिक्षण क्रम नाम देना अधिक उपयुक्त है । किसी भी बात को सीखने या पढ़ने में क्या-क्या बाधक कारण होते हैं ? उनकी बात है । पांच कारण बताए गए थे ,उनमें से चार की व्याख्या हो चुकी है, जिस पर से यह निर्णय कराया गया कि यदि धर्म का स्वरूप जानना है और उससे कुछ काम लेना है तो  1. उसके प्रति बहुमान व उत्साह उत्पन्न कर  2. निर्णय करके यथार्थ वक्ता से उसे सुन  3. अक्रम से न सुनकर 'क' से 'ह' तक क्रम पूर्वक सुन 4. धैर्य धारकर बिना चूक प्रतिदिन महीनों तक सुन ।  अब पांचवें बाधक कारण की बात चलती है वह है वक्ता व श्रोता का पक्षपात ।  वास्तव में यह पक्षपात बहुत घातक है इस मार्ग में ।   यह उत्पन्न हुए बिना नहीं रहता कारण पहले बताया जा चुका है । पूरा वक्तव्य क्रम पूर्वक ना सुनना ही उस पक्षपात का मुख्य कारण है । 'थोड़ा जानकर मैं बहुत कुछ जान गया हूं'- ऐसा अभिमान अल्पज्ञ जीवो में अक्सर उत्पन्न हो जाता है जो आगे जाने की उसे आज्ञा

दीपावली और इतिहास

  कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन मौन होकर महावीर ध्यान में लीन हुए,यह उनके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण क्षण था महावीर के जीव की पर्याय धन्य हुई इसलिए यह दिवस धन्य तेरस कहलाया।    कार्तिक कृष्णा चतुर्दशी की रात्रि में आज से 2548 साल पहले अंतिम तीर्थंकर वर्द्धमान महावीर का निर्वाण हुआ।     अमावस्या को प्रातः देवो और मनुष्यों ने वर्द्धमान की निर्वाण कल्याणक की पूजा की,इस समय पावानगरी में 9 मल्ल,9 लिच्छिवि 18 काशी-कौशल गणों के राजा,प्रजा उपस्थित थे,सभी ने उपवास पूर्वक तीर्थंकर की पूजा की।     पुनः कार्तिक कृष्णा अमावस्या की रात्रि को तीर्थंकर के शिष्य इन्द्रभूति गौतम गणधर कैवल्य को उपलब्ध हुए,उस कैवल्य को जैन दर्शन में आत्मा की निधि/लक्ष्मी की उपमा दी गई है,संसारी जीवों ने अलौकिक और लौकिक दोनों लक्ष्मी की प्राप्ति के उद्देश्य से प्रतीक रुप देवी लक्ष्मी की पूजा आरंभ की। अगले दिन कार्तिक शुक्ला प्रतिपदा के दिन देवों और मनुष्यों ने केवली इंद्रभूति गौतम की पूजा की व महावीर निर्वाण की स्मृति में वीर निर्वाण संवत् प्रारंभ हुआ। दीपावली  दीपावली शब्द का सबसे पुराना साहित्यिक उल्लेख राष्ट्रकूट(राठौड़) स

मांसाहार के चौकाने वाले तथ्य

मांस भक्षण पर वैज्ञानिकों की चौकानें वाली  शोध    प्राकृतिक आपदाओं पर हुई नई खोजों के नतीजें मानें तो इन दिनों बढ़ती मांसाहार की प्रवृत्ति भूकंप और बाढ़ के लिए जिम्मेदार है। आइंस्टीन पेन वेव्ज के मुताबिक मनुष्य की स्वाद की चाहत- खासतौर पर मांसाहार की आदत के कारण प्रतिदिन मारे जाने वाले पशुओं की संख्या दिनोंदिन बढ़ रही है। सूजडल (रूस) में पिछले दिनों हुए भूस्खलन और प्राकृतिक आपदा पर हुए एक सम्मेलन में भारत से गए भौतिकी के तीन वैज्ञानिकों ने एक शोधपत्र पढ़ा। डा. मदन मोहन बजाज, डा. इब्राहीम और डा. विजयराजसिंह के अलावा दुनियाँ भर के 23 से अधिक वैज्ञानिकों द्वारा  तैयार किए शोधपत्र के आधार पर कहा गया कि भारत, जापान, नेपाल, अमेरिका, जार्डन, अफगानिस्तान, अफ्रीका में पिछले दिनों आए तीस बड़े भूकंपों में आइंस्टीन पैन वेव्ज (इपीडबल्यू) या नोरीप्शन वेव्ज बड़ा कारण रही है। इन तरंगों की व्याख्या यह की गई है कि कत्लखानों में जब पशु काटे जाते हैं तो उनकी अव्यक्त कराह, फरफराहट, तड़प वातावरण में तब तक रहती है जब तक उस जीव का  माँस, खून, चमड़ी पूरी तरह नष्ट नही होती. उस जीव की कराह खाने वालों से लेकर पूरे

कहाँ ले जाना है इतना इकट्ठा करके

कहाँ ले जाना है इतना इकट्ठा करके ? *(जिंदगी का कड़वा सच)* 🙏🙏🙏🙏🙏      *दुनियां* की बहुत ही *मशहूर* फैशन डिजाइनर और *लेखिका करीसदा रोड्रिगेज* कैंसर से अपनी *मौत से पहले लिखती* हैं.- 1. मेरे कार गैराज में दुनिया की महंगी से कीमती कारें खड़ी हैं पर मैं आज अस्पताल की व्हीलचेयर पर सफर करने को मजबूर हूं। 2. घर में मेरी अलमारी में एक से एक महंगे कपड़े हैं। हीरे, जवाहरात, गहने  *बेशुमार महंगे जूते* पड़े हैं पर मैं अस्पताल की दी हुई एक सफेद चादर में नंगे पैर लिपटी हुई हूं। 3. मेरे *बैंक में बेशुमार पैसे* हैं पर अब वे मेरे किसी काम के नहीं हैं। 4. मेरा *घर* एक *महल* की तरह है पर मैं *अस्पताल में डबल साइज बेड* पर पड़ी हुई हूं। 5. मैं एक *फाइव स्टार होटल* से दूसरे फाइव स्टार होटल में रूम बदल-बदल कर रहती थी, पर अब *एक लैबोरेट्री* से *दूसरी लैबोरेटरी* के बीच घूम रही हूं। 6. मैंने *करोड़ों* चाहने वालों को अपने *ऑटोग्राफ* दिए हैं, किंतु आज मैंने *डॉक्टर* के आखिरी नोट पर दस्तखत कर दिए हैं। 7.  मेरे पास बालों को संवारने वाले 7 *महंगे ज्वेलरी सेट* हैं लेकिन अब मेरे सिर पर बाल ही नहीं हैं। 8. अपने *निज

यदि जैन एक हो जाएं तो

*यदि जैन एक हो जाए, तो पिछले एक हजार वर्ष में जो खोया है, वह अगले 100 वर्षों में वापस पाया जा सकता है!* *बसवन्ना जैन धर्म में जन्मे थे।* कर्नाटक के कन्नड़ साहित्य का लेखन जैनों ने ही किया है। *कर्नाटक के इतिहास के सभी बड़े राजा जैन धर्म के अनुयायी थे। पूरे भारतवर्ष के जैन राजाओं की सूची तो बहुत ही बड़ी है!* *कर्नाटक में गंगा साम्राज्य (सारी शाखाएँ), कदंब साम्राज्य (सारी शाखाएँ), राष्ट्रकूट साम्राज्य, चालुक्य राजवंश (सारी शाखाएँ), अल्लूपा (सारी शाखाएँ), कलचुरी (सारी शाखाएँ), सेउना यादव, शिलाहार (सारी शाखाएँ), होयसला साम्राज्य, पुन्नाट्ट, सैंद्रक, नोलंबा, सिंदा राजवंश (सारी शाखाएँ) जैसे ताकतवर और प्रभावशाली जैन साम्राज्य कर्नाटक के इतिहास में हुए है।* कर्नाटक की पावन भूमि जैनों के इतिहास, योगदान और वैश्विक प्रभुत्व से भरी हुई है। *भारतवर्ष के इतिहास में चंद्रगुप्त मौर्य ही थे जिन्होंने सबसे बड़े भूभाग पर शासन किया था। उनके पश्चात राष्ट्रकूट राजा अमोघवर्षा ने अखंड भारत पर राज्य किया। ये दोनों साम्राट जैन थे।* वैसे तों देश के सभी बड़े साम्राज्यों के राजा *जैन* थे। पूरे विश्व में एक समय पर *४०

जैन और अग्रवाल के संबंध का इतिहास

जैन और अग्रवाल के संबंध का इतिहास  प्राचीन काल से ही जैन धर्म का पालन सभी समुदाय और जाति के लोग करते आ रहे हैं । मुख्य रूप से क्षत्रिय ,वैश्य और किसी हद तक ब्राह्मण इस धर्म का पालन आपने जीवन में करते आये हैं ।  सभी तीर्थंकर यदि क्षत्रिय कुल के थे तो कई जैनाचार्य मूल रूप से ब्राह्मण कुल के रहे हैं ,श्रावक अधिकांश वैश्य कुल के थे । इन सबके बाद भी तीर्थंकरों की वाणी में सभी जीवों के उत्थान के लिए धर्म का उपदेश हुआ । निम्न कुल के लोग भी अपने कल्याण के लिए जैन धर्म का पालन करते आये हैं । अग्रवाल जाति के लोग भी पूर्व में मूल रूप से जैन धर्मानुयायी थे ।  इन्होंने जैन धर्म और जैन संस्कृति को बहुत सींचा है। कोलकाता के जितने भी पुराने मंदिर हैं चाहे बड़ा मंदिर हो, चाहे नया मंदिर हो, चाहे पुराने बाडी मन्दिर होता उत्तर पाड़ी मंदिर हो । वहां के प्रसिद्ध बेलगछिया जैन मंदिर के निर्माता अग्रवाल श्रेष्ठी थे ऐसे कई विशाल मंदिरो का निर्माण अग्रवाल जैन बंधूओ ने करवाया था । बनारस में अग्रवाल जैनों का एक बड़ा समुदाय रहता है । यहां के दिगम्बर जैन मंदिर अधिकांश अग्रवाल जैन समाज से ही आते हैं । अग्रवा

दिलबड़ा के जैन मंदिर

व्हाट्सअप पर प्राप्त दिलवाड़ा जैन मंदिर   900 साल पुराना ये जैन मंदिर अपने सौंदर्य के चलते बना अजूबा।        इस दुनिया के अजूबों के बारे में तो आप सभी जानते हैं जो अपनी बेजोड़ संरचना और सुंदरता के लिए जाने जाते हैं। लेकिन आज इस कड़ी में हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जो अपनी सुंदरता और संरचना में किसी अजूबे से कम नहीं हैं। शिल्प सौंदर्य का बेजोड़ खजाना यह मंदिर 900 साल से भी ज्यादा पुराना बताया जाता है। हम बात कर रहे हैं दिलवाड़ा जैन मंदिर के बारे में। असल में यह पांच मंदिरों का एक समूह है, जो राजस्थान के सिरोही जिले के माउंट आबू नगर में स्थित है। इन मंदिरों का निर्माण 11वीं शताब्दी से लेकर 16वीं शताब्दी के बीच हुआ था। सभी मंदिर जैन धर्म के तीर्थंकरों को समर्पित हैं।        दिलवाड़ा के मंदिरों में सबसे प्राचीन 'विमल वासाही मंदिर' है, जिसे 1031 ईस्वी में बनाया गया था। यह मंदिर जैन धर्म के पहले तीर्थंकर भगवान आदिनाथ को समर्पित है। सफेद संगमरमर से तराश कर बनाए गए इस मंदिर का निर्माण गुजरात के चालुक्य राजवंश के राजा भीम प्रथम के मंत्री विमल शाह ने करवाया था। कहते ह

मूर्खों वाली टोपी

*कहानी बड़ी सुहानी*      *ज्ञानचंद की लाल टोपी*        ज्ञानचंद नामक एक जिज्ञासु भक्त था।वह सदैव प्रभुभक्ति में लीन रहता था।रोज सुबह उठकर पूजा- पाठ,ध्यान-भजन करने का उसका नियम था।उसके बाद वह दुकान में काम करने  जाता।   दोपहर के भोजन के समय वह दुकान बंद कर देता और फिर दुकान नहीं खोलता था,बाकी के समय में वह साधु-संतों को भोजन करवाता, गरीबों की सेवा करता, साधु-संग एवं दान-पुण्य करता।व्यापार में जो भी मिलता उसी में संतोष रखकर प्रभुप्रीति के लिए जीवन बिताता था।       उसके ऐसे व्यवहार से लोगों को आश्चर्य होता और लोग उसे पागल समझते। लोग कहतेः "यह तो महामूर्ख है। कमाये हुए सभी पैसों को दान में लुटा देता है। फिर दुकान भी थोड़ी देर के लिए ही खोलता है। सुबह का कमाई करने का समय भी पूजा-पाठ में गँवा देता है। यह पागल ही तो है।"          एक बार गाँव के नगरसेठ ने उसे अपने पास बुलाया। उसने एक लाल टोपी बनायी थी। नगरसेठ ने वह टोपी ज्ञानचंद को देते हुए कहा"यह टोपी मूर्खों के लिए है।तेरे जैसा महान् मूर्ख मैंने अभी तक नहीं देखा, इसलिए यह टोपी तुझे पहनने के लिए देता हूँ।  इसके बाद यदि कोई तेरे

उल्लू के हक में फैसला

*आज की हकीकत ----------   हंस और उल्लू* *एक बार एक हंस और हंसिनी हरिद्वार के सुरम्य वातावरण से भटकते हुए, उजड़े वीरान और रेगिस्तान के इलाके में आ गये!* *हंसिनी ने हंस को कहा कि ये किस उजड़े इलाके में आ गये हैं ??*  *यहाँ न तो जल है, न जंगल और न ही ठंडी हवाएं हैं यहाँ तो हमारा जीना मुश्किल हो जायेगा !* *भटकते-भटकते शाम हो गयी तो हंस ने हंसिनी से कहा कि किसी तरह आज की रात बीता लो, सुबह हम लोग हरिद्वार लौट चलेंगे !* *रात हुई तो जिस पेड़ के नीचे हंस और हंसिनी रुके थे, उस पर एक उल्लू बैठा था।* *वह जोर से चिल्लाने लगा।* *हंसिनी ने हंस से कहा- अरे यहाँ तो रात में सो भी नहीं सकते।* *ये उल्लू चिल्ला रहा है।*  *हंस ने फिर हंसिनी को समझाया कि किसी तरह रात काट लो, मुझे अब समझ में आ गया है कि ये इलाका वीरान क्यूँ है ??* *ऐसे उल्लू जिस इलाके में रहेंगे वो तो वीरान और उजड़ा रहेगा ही।* *पेड़ पर बैठा उल्लू दोनों की बातें सुन रहा था।* *सुबह हुई, उल्लू नीचे आया और उसने कहा कि हंस भाई, मेरी वजह से आपको रात में तकलीफ हुई, मुझे माफ़ करदो।* *हंस ने कहा- कोई बात नही भैया, आपका धन्यवाद!*  *यह कहकर जैसे ही हंस

मुगल बादशाह और जैनाचार्य

मुगल बादशाह और जैनाचार्य  भारत में श्रमण परंपरा दीर्घकाल से चलती आ रही है , तथा बहुत प्रचलित है । श्रमण भगवान महावीर के अनुयाई - आचार्यों के त्याग ,अहिंसा और आत्मिक प्रेरणा ने सामान्य जनता के साथ ,मुगल बादशाहों पर भी प्रभाव डाला था । मोहम्मद तुगलक ने एक बार धाराधार विद्वान से पूछा कि इस समय कौन बड़ा ज्ञानी है । तब उसने जैन आचार्य श्री जीनप्रभासूरी जी का नाम बताया। यह घटना सन 1328 की है । बादशाह ने उन्हें दरबार में बुलाया । दरबार में आचार्य श्री ने बादशाह को एक सुंदर संस्कृत श्लोक के द्वारा आशीर्वाद दिया। तथा अर्ध रात्रि तक उन्होंने विविध धर्मों की चर्चा में प्रभावी ढंग से भाग लिया । उनके ज्ञान और प्रस्तुति की सुंदर शालीनता से बादशाह अत्यंत प्रभावित हुए । अतः उन्होंने राज्य में फरमान निकाला कि जैन धर्मावलंबियों को सताया न जाए। उस समय दूसरे धर्म वाले जैन साधु साध्वी यों को सताते थे । मोहम्मद तुगलक में जयदेवसूरीजी को भी दरबार में बुलाया था । और उनके ज्ञान और त्याग से प्रसन्न होकर जैन मोहल्ला बसाया था । जहां मंदिर , उपासना और जैन बस्ती के मकान थे।         अकबर बादशाह भी जैन धर्म के उदात्त

शिकंजी का स्वाद

शिकंजी का स्वाद *एक प्रोफ़ेसर क्लास ले रहे थे,क्लास के सभी छात्र बड़ी ही रूचि से उनके लेक्चर को सुन रहे थे,उनके पूछे गये सवालों के जवाब दे रहे थे,लेकिन उन छात्रों के बीच कक्षा में एक छात्र ऐसा भी था, जो चुपचाप और गुमसुम बैठा हुआ था प्रोफ़ेसर ने पहले ही दिन उस छात्र को *नोटिस कर लिया, लेकिन कुछ नहीं बोले,लेकिन जब 4-5 दिन तक ऐसा ही चला, तो उन्होंने उस छात्र को क्लास के बाद अपने केबिन में बुलवाया और पूछा,“तुम हर समय उदास रहते हो. क्लास में अकेले और चुपचाप बैठे रहते हो, लेक्चर पर भी ध्यान नहीं देते. क्या बात है? कुछ परेशानी है क्या?”* *“सर, वो…..” छात्र कुछ हिचकिचाते हुए बोला, “….मेरे अतीत में कुछ ऐसा हुआ है, जिसकी वजह से मैं परेशान रहता हूँ, समझ नहीं आता क्या करूं?”*  *प्रोफ़ेसर भले व्यक्ति थे,उन्होंने उस छात्र को शाम को अपने घर पर बुलाया,शाम को जब छात्र प्रोफ़ेसर के घर पहुँचा, तो प्रोफ़ेसर ने उसे अंदर बुलाकर बैठाया. फिर स्वयं किचन में चले गये और शिकंजी बनाने लगे,उन्होंने जानबूझकर शिकंजी में ज्यादा नमक डाल दिया,फिर किचन से बाहर आकर शिकंजी का गिलास छात्र को देकर कहा, “ये लो, शिकंजी पियो.”* *छात्

मांसाहार और शाकाहार : विज्ञान की दृष्टि

*मांसाहार पर वैज्ञानिकों की शोध* प्राकृतिक आपदाओं पर हुई नई खोजों के नतीजें मानें तो इन दिनों बढ़ती मांसाहार की प्रवृत्ति भूकंप और बाढ़ के लिए जिम्मेदार है। आइंस्टीन पेन वेव्ज के मुताबिक  *मनुष्य की स्वाद की चाहत* खासतौर पर मांसाहार की आदत के कारण प्रतिदिन मारे जाने वाले पशुओं की संख्या दिनोंदिन बढ़ रही है। सूजडल (रूस) में पिछले दिनों हुए भूस्खलन और प्राकृतिक आपदा पर हुए एक सम्मेलन में भारत से गए भौतिकी के तीन वैज्ञानिकों ने एक शोधपत्र पढ़ा। डा. मदन मोहन बजाज, डा. इब्राहीम और डा. विजयराजसिंह के अलावा दुनियाँ भर के 23 से अधिक वैज्ञानिकों द्वारा  तैयार किए शोधपत्र के आधार पर कहा गया कि भारत, जापान, नेपाल, अमेरिका, जार्डन, अफगानिस्तान, अफ्रीका में पिछले दिनों आए तीस बड़े भूकंपों में आइंस्टीन पैन वेव्ज (इपीडबल्यू) या नोरीप्शन वेव्ज बड़ा कारण रही है। इन तरंगों की व्याख्या यह की गई है कि कत्लखानों में जब पशु काटे जाते हैं तो उनकी अव्यक्त कराह, फरफराहट, तड़प वातावरण में तब तक रहती है जब तक उस जीव का  माँस, खून, चमड़ी पूरी तरह नष्ट नही होती. उस जीव की कराह खाने वालों से लेकर पूरे वातवरण मे भय

विश्वास की कीमत

*👉 विश्वास 👈*            एक विद्वान साधु थे जो दुनियादारी से दूर रहते थे। वह अपनी ईमानदारी, सेवा तथा ज्ञान के लिए प्रसिद्ध थे। एक बार वह पानी के जहाज से लंबी यात्रा पर निकले।         उन्होंने यात्रा में खर्च के लिए पर्याप्त धन तथा एक हीरा संभाल के रख लिया । ये हीरा किसी राजा ने उन्हें उनकी ईमानदारी से प्रसन्न होकर भेंट किया था सो वे उसे अपने पास न रखकर किसी अन्य  राजा को देने जाने के लिए ही ये यात्रा कर रहे थे। यात्रा के दौरान साधु की पहचान दूसरे यात्रियों से हुई। वे उन्हें ज्ञान की बातें बताते गए। एक फ़क़ीर यात्री ने उन्हें नीचा दिखाने की मंशा से नजदीकियां बढ़ ली।      एक दिन बातों-बातों में साधु ने उसे विश्वासपात्र अल्लाह का बन्दा समझकर हीरे की झलक भी दिखा दी। उस फ़क़ीर को और लालच आ गया।             उसने उस हीरे को हथियाने की योजना बनाई। रात को जब साधु सो गया तो उसने उसके झोले तथा उसके वस्त्रों में हीरा ढूंढा पर उसे नही मिला। अगले दिन उसने दोपहर की भोजन के समय साधु से कहा कि इतना कीमती हीरा है,आपने संभाल के रक्खा है न। साधु ने अपने झोले से निकलकर दिखाया कि देखो ये इसमे रखा है। हीरा देखक

प्रेरक कहाणी

एक बार समुद्र के बीच में एक बड़े जहाज पर बड़ी दुर्घटना हो गयी। कप्तान ने जहाज खाली करने का आदेश दिया।जहाज पर एक युवा दम्पति थे। जब लाइफबोट पर चढ़ने का उनका नम्बर आया तो देखा गया नाव पर केवल एक व्यक्ति के लिए ही जगह है।इस मौके पर आदमी ने अपनी पत्नी को अपने आगे से हटाया और नाव पर कूद गया।जहाज डूबने लगा। डूबते हुए जहाज पर खड़ी औरत ने जाते हुए अपने पति से चिल्लाकर एक वाक्य कहा। अब प्रोफेसर ने रुककर स्टूडेंट्स से पूछा – तुम लोगों को क्या लगता है, उस स्त्री ने अपने पति से क्या कहा होगा ? ज्यादातर विद्यार्थी फ़ौरन चिल्लाये – स्त्री ने कहा – मैं तुमसे नफरत करती हूँ ! I hate you ! प्रोफेसर ने देखा एक स्टूडेंट एकदम शांत बैठा हुआ था, प्रोफेसर ने उससे पूछा कि तुम बताओ तुम्हे क्या लगता है ? वो लड़का बोला – मुझे लगता है, औरत ने कहा होगा – हमारे बच्चे का ख्याल रखना ! प्रोफेसर को आश्चर्य हुआ, उन्होंने लडके से पूछा – क्या तुमने यह कहानी पहले सुन रखी थी ? लड़का बोला- जी नहीं,लेकिन यही बात बीमारी से मरती हुई मेरी माँ ने मेरे पिता से कही थी। प्रोफेसर ने दुखपूर्वक कहा – तुम्हारा उत्तर सही है ! प्रोफेसर ने कहानी आ